नई दिल्ली। 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने 34 साल बाद मंगलवार को किसी को मौत की सजा दी है। दिल्ली की एक अदालत ने हत्या के दोषी ठहराए गए नरेश सहरावत को उम्रकैद की सजा सुनाई तो वहीं, यशपाल सिंह को मौत की सजा दी। पिछले हफ्ते कोर्ट ने इस मामले पर संबंधित सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। बात दे कि सजा पर बहस के दौरान अभियोजन और पीड़ितों के वकील ने दोषियों के लिए फांसी की मांग की थी, जबकि बचाव पक्ष की ओर से रहम की गुहार लगाई गई थी। केंद्र के आदेश पर गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) ने पिछले सप्ताह एडिशनल सेशन जज अजय पांडे के सामने सजा पर बहस के दौरान दलील दी थी कि दोषियों का अपराध गंभीर प्रकृति का है,जिस पूरी साजिश के तहत अंजाम दिया गया, इसलिए हत्या के अपराध के लिए उन्हें अधिकतम सजा के तौर पर फांसी दी जाए।
उधर,पीड़ितों की ओर से पेश सीनियर काउंसिल एचएस फुल्का ने भी एसआईटी की मांग का समर्थन करते हुए दलील दी कि अदालत के फैसले पर सिर्फ दंगा पीड़ितों को नहीं, पूरी दुनिया की नजर टिकी है। बता दें कि यह मामला हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह ने दर्ज कराया था। दिल्ली पुलिस ने सबूतों के अभाव में 1994 में यह मामला बंद कर दिया था लेकिन दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने मामले को दोबारा खोला गया।
किस मामले में हुई सजा?
आज से 34 साल पहले 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कई शहरों में दंगे भड़क उठे थे। इसी दौरान दिल्ली के महिपालपुर इलाके में दो सिख युवकों की हत्या कर दी गई थी। मंगलवार को इसी मामले में यशपाल और नरेश को सजा हुई है। इससे पहले अदालत ने दोनों आरोपियों को आईपीसी की कई धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद दोषियों को हिरासत में ले लिया गया था।
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