PBK NEWS | नई दिल्ली। इंफोसिस के एमडी व सीईओ विशाल सिक्का के इस्तीफे ने देश की इस सबसे प्रतिष्ठित आइटी कंपनी के सामने अब तक की सबसे बड़ी चुनौती पेश कर दी है। ऐसे समय जब इंफोसिस अमेरिका में घट रही कारोबार की संभावनाओं और आइटी क्षेत्र की मांग में कमी से निपटने में जुटी थी, तब सिक्का का इस तरह से जाना कंपनी की भावी तैयारियों पर सवाल खड़े कर रहा है। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सिक्का के बाद निदेशक बोर्ड को कंपनी की साख बनाए रखने के लिए अब पहले से ज्यादा सूझ-बूझ दिखानी होगी।
इक्विटी फर्म एजेंल ब्रोकिंग के वाइस प्रेसिडेंट (आइटी) सरबजीत कौर नांगरा का कहना है कि सिक्का ने अपनी इस्तीफे के पीछे जो वजहें बताई हैं, उससे साफ है कि उनकी सोच के मुताबिक प्रबंधन आगे कदम नहीं बढ़ा पा रहा था। यह कंपनी के लिए निश्चित तौर पर एक धक्का है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि निदेशक बोर्ड इससे उबरने के लिए ज्यादा मुस्तैदी दिखाएगा। ज्यादा जानकार सिक्का के इस्तीफे को कंपनी के बीच चल रहे अन्य विवादों से जोड़कर देख रहे हैं। खास तौर पर किस तरह से एक स्वतंत्र सीईओ की सोच को लागू करने में कोताही की जा रही है।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के हेड (पीसीजी) वीके शर्मा का कहना है कि सिक्का के नेतृत्व में इंफोसिस ने अन्य आइटी कंपनियों से बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन उसके हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। सिक्का की ओर से तय लक्ष्यों के मुकाबले प्रदर्शन के मामले में कंपनी काफी पीछे है। विशाल ने इंफोसिस को वर्ष 2020 तक 20 अरब डॉलर की कंपनी बनाने का लक्ष्य रखा था। अभी यह 10 अरब डॉलर की कंपनी है।
निलेकणि को फिर बनाएं सीईओ
निवेश सलाहकार फर्म द इंस्टीट्यूशनल इंवेस्टर एडवायजरी सर्विस का कहना है कि जो कंपनी अपने सीईओ को भी सुरक्षित नहीं रख सके, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। इसने कंपनी को सुझाव दिया है कि उसे नंदन निलेकणि को फिर से सीईओ बनाने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। सिक्का इंफोसिस के पहले गैर संस्थापक एमडी व सीईओ थे। उनके पहले प्रमोटरों को इस पद पर नियुक्त करने की परंपरा थी। ग्लोबल इक्विटीज के प्रमुख तृप चौधरी का कहना है कि पूरे भारतीय आइटी कंपनियों के लिए भी आने वाला समय काफी चुनौतीपूर्ण रहेगा। इंफोसिस के लिए हालात अब ज्यादा मुश्किल साबित हो सकते हैं।
फिर उठा प्रमोटर बनाम बाहरी का मुद्दा
इंफोसिस के सीईओ एवं और एमडी विशाल सिक्का के अचानक इस्तीफे से प्रमोटर बनाम बाहरी का मुद्दा एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है। सिक्का के इस्तीफे के लिए कुछ संस्थापकों और कंपनी प्रबंधन के बीच मतभेद को कारण बताया जा रहा है। सिक्का ने 2014 में कंपनी के पहले गैर संस्थापक सीईओ के रूप में पद संभाला था। इससे पहले कंपनी के संस्थापक सदस्य ही बारी-बारी से इस पद को संभालते रहे थे। सिक्का से पहले टाटा समूह से चेयरमैन साइरस मिस्त्री को अचानक हटाए जाने पर भी बड़ी कंपनियों के सर्वोच्च पद पर बाहरी बनाम प्रमोटर का मुद्दा उठा था।
टाटा समूह में मिस्त्री के परिवार की उल्लेखनीय हिस्सेदारी होने के बाद भी उन्हें बाहरी माना गया था। विशेषज्ञों ने मिस्त्री के हटने के पीछे अहम वजह रतन टाटा से उनके मतभेदों को बताया था। टाटा समूह ने मिस्त्री के बाद एन चंद्रशेखरन को मुखिया बनाया, जो टाटा परिवार से भले न हों, लेकिन समूह की कंपनी टीसीएस में लंबे समय से अहम भूमिका में थे।
देश में बजाज, हीरो ग्रुप, भारती, महिंद्रा, डॉ. रेड्डीज और सन फार्मा जैसी तमाम ब्लूचिप कंपनियों में मुखिया संस्थापक सदस्यों के परिवार से ही हैं। इन कंपनियों ने सीईओ या अन्य बड़े पदों पर बाहरी पेशेवरों को नियुक्ति दी लेकिन सर्वोच्च कार्यकारी पद प्रमोटरों के हाथ में ही रखा। रिलायंस समूह, विप्रो, गोदरेज और अडानी जैसी तमाम कंपनियां, जो किसी परिवार द्वारा संचालित हैं, उनमें बच्चों को ही उत्तराधिकारी के रूप में तैयार किया जाता रहा है।
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