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चीन की देखा देख गैस आयात पर बदल रही अन्य देशों की चाल : सुनील त्यागी

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गुडगाँव, 4 जनवरी (ब्यूरो) : पुराना तेल उद्योग बरसों से दुनिया में देशों की अमीरी और गरीबी के मानक और राजनय के नियम कायदे बना रहा था, पर अब उसके स्रूप में आए बदलाों ने कई पड़ोसी दोस्तियों-दुश्मनियों की नई सीमाएं उजागर कर दी हैं। सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिका का है जहां ट्रंप ने मेक्सिको से भारी तादाद में गैरकानूनी ढंग से अमेरिका आ रहे आ्रजकों पर कड़ी रोक को चुनाी मुद्दा बनाकर चुना तो जीत लिया, लेकिन जब चुना के बाद बात आाजाही पर कठोर रोक लगाने और दोनों देशों के बीच चीन सरीखी िशाल दीार बनाने की होने लगी तो मेक्सिको से रार ठानना अमेरिकी अर्थ्यस्था के गले का ढोल बन गया है। 2015 तक दोनों देशों के बीच प्रति मिनट दस लाख डॉलर के माल की आाजाही भी लड़खड़ा गई। कई लाभकारी उपक्रम भी मेक्सिको के खिलाफ लगाई बेसमझ बंदिशों की जह से नुक्सान ङोलने को मजबूर हैं। अरब देशों, चीन या रूस की तरह अमेरिकी अर्थ्यस्था या मीडिया एकचालकानुर्ती और सरकार की मुखापेक्षी नहीं हैं। लिहाजा इन कदमों की खुली आलोचना में खुद ट्रंप की पार्टी भी, जिसके महत्पूर्ण हित स्ार्थ तेल जगत से जुडे हैं, उतर आई है। नई तरह की ऊर्जा के अलाा जमीनी यातायात के बरक्स ऊर्जा की समुद्री मार्ग से ढुलाई भी इधर बदली है। 2005 में प्राकृतिक गैस को तरल रूप देने और फिर तरल से ाष्पीकृत बनाने की तकनीक खोजी गई जिससे गैस को, खर्चीली और किसी हद तक असुरक्षित अंतरराष्ट्रीय जमीनी पाइपलाइनों के बजाय तरल बनाकर कंटेनरों के मार्फत समुद्री मार्ग से जहां-तहां भेजना संभ बन गया है। लिहाजा चीन अब रूस के नखरे सहकर उसकी गैस पाइपलाइन की सहायता लेने का इच्छुक नहीं। उसकी जेब भारी है सो ह अब कहीं से भी समुद्री मार्ग से तरल गैस आयात कर सकता है। चीन की देखादेखी कई छोटे मध्य यूरोपीय देश भी अब तरल गैस समुद्री मार्ग से आयात करा रहे हैं

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