गुड़गांव, 13 जनवरी (अजय) : ध्रुवीय रॉकेट को अभी तक मात्र दो बार विफलताओं का सामना करना पड़ा है। उसकी पहली उड़ान 20 सितंबर, 1993 को आयोजित हुई थी (मिशन पीएसएलवी-डी1) जो विफल रही थी। रॉकेट के साथ इस पर सवार उपग्रह ‘आइआरएस-1ई’ भी जल कर नष्ट हो गया था। इसके बाद इसरो को दूसरी विफलता से 31 अगस्त, 2017 को दो-चार होना पड़ा, जब ध्रुवीय रॉकेट (मिशन पीएसएलवी-सी 39) के तापीय कवच उससे अलग नहीं हो सके। बहरहाल इसरो के वैज्ञानिकों ने खासी मशक्कत के बाद उस तकनीकी त्रुटि का समाधान कर दिया और इस प्रकार देश-विदेश की सारी एजेंसियों पर फिर से इसरो पर भरोसा कायम हो गया।
2018 की शुरूआत में ही देश के अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों ने देशवासियों को गर्व करने का एक अवसर प्रदान कर दिया है. आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपना 100वां सैटेलाईट लांच किया है. पीएसएलवी सी-फोर्टी अपने साथ सबसे भारी कार्टोसैट 2 सीरीज के उपग्रह के अलावा 30 दूसरी सैटलाइट भी अंतरिक्ष में ले गया है इस बार इसरो ने एक साथ 31 सैटेलाईट लांच किये जिनमें 28 विदेशी ग्राहकों के है. इसरो के वैज्ञानिक एएस किरण ने बताया कि पिछले पीएसएलवी लॉन्च के दौरान हमें समस्याएं हुईं थी और आज जो हुआ है उससे यह साबित होता है कि समस्या को ठीक से देखा गया और उसमें सुधार किया गया. देश को इस नए साल का उपहार देने के लिए शुभकामनाएं
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