भारतीय रेलवे को लेकर पिछले कुछ समय में लगातार खराब खबरें ही आती रही हैं। नरेंद्र मोदी की सरकार में सुरेश प्रभु जैसे रेलवे मंत्री को भी खराब खबरों की वजह से इस्तीफा देना पड़ा और आखिरकार ढेर सारी दुर्घटनाओं के बीच प्रधानमंत्री ने उनका इस्तीफा स्वीकार करके पीयूष गोयल को रेल मंत्रालय सौंप दिया। मंत्रालय के अधिकारियों के साथ पहली बैठक में ही पीयूष गोयल ने साफ कहा था कि 1000 ट्रेनों की रफ्तार बढ़ानी है, लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार के 4 साल बीतने को है और सबसे ज्यादा यात्री इसी बात से परेशान हैं कि ट्रेनें समय पर नहीं पहुंच रही हैं। आखिर क्या हो गया कि सिर्फ सर्दियों में देरी से पहुंचने वाली ट्रेनें सामान्य मौसम में भी देरी से पहुंच रही हैं। यही समझने के लिए मैं मंत्रालय पहुंचा और एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की। उन्होंने कहा कि ट्रेनें अभी देरी से ही चलेंगी, क्योंकि रेलवे बहुत तेजी से पटरियों को बदलने में लगा है। पटरियों को अभी नहीं बदला गया तो आगे बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।
दो महत्वपूर्ण वजह
उन्होंने दो महत्वपूर्ण वजहें बताईं। पहली, लंबे समय से पटरियों को न बदलने और उन पटरियों पर उनकी क्षमता से कई गुना ज्यादा ट्रेनें चलने से उनमें दरारें आ रही हैं, पटरियां कमजोर हो चुकी हैं। दूसरी, देश की जनता को उसकी मांग के अनुरूप आरक्षित सीटें देने के लिए रेलवे पटरियों पर रेलगाड़ियों को तेज गति से चलाना होगा, जिससे ज्यादा सीटें दी जा सकें। अधिकारी के दोनों ही तर्क मजबूत थे। वित्तीय वर्ष 2017-18 की बात करें तो 4,405 किलोमीटर पुरानी पटरियों को बदलकर नया कर दिया गया है। अब तक किसी भी वित्तीय वर्ष में सबसे ज्यादा पटरियां बीते वित्तीय वर्ष में बदली गई हैं। इससे पहले किसी एक साल में सबसे ज्यादा पटरियां बदली गई थीं तो वो साल था 2004-05। नरेंद्र मोदी सरकार ने रेलवे बजट को खत्म कर दिया और पांच साल के लिए रेलवे में सुधार का लक्ष्य तय किया। सुरेश प्रभु उसी एजेंडे पर आगे बढ़ रहे थे। अब रेल मंत्री पीयूष गोयल उसी एजेंडे को तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं। देश में 1,14,907 किलोमीटर की रेलने पटरियां हैं।
हर साल बदलनी चाहिए 4,500 किमी पटरियां
आदर्श स्थिति में हर साल 4,500 किलोमीटर पटरियां बदली जानी चाहिए। बीते साल इस आदर्श स्थिति के काफी नजदीक रेलवे पहुंच पाया है। इसका सबसे सुखद परिणाम लोगों की सुरक्षित यात्र है। दुर्घटनाओं में लगातार कमी आई है। ट्रेनों के पटरियों से उतरने के 53 मामले अप्रैल 2017 से फरवरी 2018 के दौरान दर्ज हुए, जबकि अप्रैल 2016 से फरवरी 2017 के दौरान गाड़ी पटरी से उतरने के लिए 76 मामले दर्ज हुए थे। भारत में आर्थिक गतिविधियां जिस तेजी से बढ़ी हैं, उसमें सड़क और रेलवे दोनों की रास्तों को इस्तेमाल करने वाले तेजी से बढ़े हैं। यही वजह है कि ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों के लिए रेलवे में जरूरत के समय आरक्षित सीट मिल पाना टेढ़ी खीर होता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि नई ट्रेनें चलाई जाएं और पुरानी ट्रेनों में डिब्बे बढ़ाए जाएं। अभी हाल यह है कि ज्यादातर रास्तों पर रेलवे क्षमता से ज्यादा ट्रेनें चला रहा है। उस पर पटरियां पुरानी होने से ज्यादा रफ्तार से ट्रेनें नहीं चलाई जा सकतीं।
जल्द बढ़ेगी ट्रेनों की रफ्तार
अब इस तेजी के साथ पटरियां बदलने से आने वाले दिनों में ट्रेनों को ज्यादा रफ्तार से चलकर समय बचाया जा सकेगा और यात्र सुरक्षित होने के साथ नई ट्रेनों के चलाने की गुंजाइश भी बनेगी। दिल्ली से मुंबई के बीच की यात्र का समय घटाकर 10 घंटे करने की योजना है। अभी राजधानी से दिल्ली से मुंबई जाने में करीब 16 घंटे लगते हैं, लेकिन यह सब तभी संभव होगा जब नई पटरियों पर ट्रेनें औसत 150-160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकेंगी।
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