नई दिल्ली । नीति आयोग की बैठक में हिस्सा लेने दिल्ली आईं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सक्रियता ने सबको चौंका दिया है। कयास तो यहां तक लगाया जा रहा है कि रही वे अपने को अपने को तीसरे मोर्चे के नेता के रूप में तो प्रोजेक्ट करना चाह रही है। दिल्ली में के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का धरना राष्ट्रीय राजनीति में पर्दे के पीछे खेले जा रहे खेल का एक जरिया बन गया है जिसका नतीजा 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।
एक ओर जहां कांग्रेस, एनडीए के सामने बड़ा गठबंधन बनाने की कोशिश में सभी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ समझौता करने को राजी है, वहीं टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने पिछले दो दिनों में जिस तरह की सक्रियता दिखाई है उससे लगता है कि वह खुद को तीसरे मोर्चे की नेता के तौर प्रोजेक्ट कर रही हैं। नीति आयोग की बैठक में हिस्सा लेने के लिये वह दो दिन के लिये दिल्ली आई थीं।
लेकिन इस बीच उन्होंने विशेष राज्य के दर्जे के लिये आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू का समर्थन किया तो अरविंद केजरीवाल की समस्याओं को लेकर वह दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लेकर पीएम मोदी से मुलाकात भी कर डाली। पीएम मोदी से मुलाकात के दौरान जो तस्वीर नजर आई उसमें केरल के मुख्यमंत्री पिनारी विजयन, आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू और कर्नाटक के सीएम एचडी कुमारस्वामी भी शामिल थे।
अब अगर इस तस्वीर के पीछे गणित को समझें तो पिनारी विजयन सीपीआईएम से आते हैं जो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के विरोधी खेमे वाममोर्चे की घटक दल है और इस मोर्चे में केरल लॉबी हमेशा से हावी रही है। बेमेल गठबंधन के दौर में जहां सपा-बीएसपी, कांग्रेस-जेडीएस आ सकते हैं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर केरल लॉबी के जरिये टीएमसी और सीपीआईएम एक साथ आ जाएं।
दूसरी ओर कर्नाटक में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने वाले एचडी कुमारस्वामी भी ममता के साथ पीएम मोदी से मिलने गये थे। एक ओर जहां कांग्रेस दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के धरने का विरोध कर रही है और वहीं आम आदमी पार्टी के नेता कांग्रेस को धिक्कारने में जुटे हैं तो कुमारस्वामी का ममता की अगुवाई में केजरीवाल के पक्ष में पीएम मोदी से मिलना कांग्रेस के लिये अच्छे संकेत नहीं है। हाल ही में एनडीए से अलग हुये चंद्रबाबू नायडू तेलंगाना के सीएम के.चंद्रशेखर राव के साथ मिलकर तीसरे मोर्चे की वकालत कई बार कर चुके हैं।
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