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अंतिम लक्ष्य जब तक नहीं मिले सफलता नहीं होती : शरद गोयल

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गुड़गांव, 6 जुलाई (अजय) : अधिकतर लोग अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन अंतिम पड़ाव तक पहुंचने पर पूरी मेहनत बेकार हो जाती है और असफलता हाथ लगती है। एक किसान का लक्ष्य यही होता है उसकी फसल अच्छी हो जाए और उसे बेचकर कुछ पैसा कमाए, लेकिन इस काम में बहुत ही अनिश्चिताएं होती हैं। कबीर दास द्वारा किसान की इस सफलता पर बड़ी सुंदर टिप्पणी की गई है। जब फसल बिल्कुल काटे जाने की तैयारी में होती है, तब किसान से अगर एक चूक हो जाती है तो सब कुछ बर्बाद हो सकता है।

इन पंक्तियों में ‘अजहूं झोला’ शब्द आया है, इसमें झोला का अर्थ है झमेला यानी परेशानी। किसान की फसल पक चुकी है और वह बहुत प्रसन्न है। यहीं से उसे खुद पर गरब यानी गर्व हो जाता है, लेकिन फसल काटकर घर ले जाने तक बहुत सारे झमेले होते हैं। फसल काटकर खेत में रखी है और उस दौरान बारिश हो जाए तो सब चौपट हो जाता है। जब तक फसल घर न आ जाए, तब तक सफलता नहीं माननी चाहिए। इसीलिए कहा है – ‘घर आवै तब जान।’

यही बात हमारे कार्यों पर भी लागू होती है। कोई भी काम करें, जब तक अंजाम तक न पहुंच जाएं, यह बिल्कुल नहीं मानना चाहिए कि हम सफल हो चुके हैं। बाधाएं कई प्रकार की होती हैं और वे कभी भी आ सकती है। अभिमान यानी गर्व और लापरवाही भी बाधाएं ही हैं। हमें अभिमान और लापरवाही से बचते हुए कार्य करना चाहिए। तभी अंत में सफलता मिल सकती है।

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