गुड़गांव 31 जुलाई (अजय) : धरती पर दिनप्रति दिन बढ़ती पेयजल की समस्यां पर बोलते हुए नवजन चेतना मंच के संयोजक वशिष्ठ कुमार गोयल ने बोलते हुए कहा कि कहा जा रहा है कि देश के तिहाई हिस्से में बरसात कमजोर है और वहां सूखे के हालात की संभावना है। दूसरी तरफ देश के कई हिस्सों में पानी तबाही मचाए है। खासकर महानगर व बड़े शहर जो कि सारे साल बूंद-बूंद पानी को तरसते हैं, थोड़ी-सी बरसात से पानी-पानी हो रहे हैं। लेकिन विडंबना है कि पानी से लबालब दिख रही प्रकृति कुछ ही दिनों में पानी के लिए तरसती दिखेगी। बारीकी से देखें तो पानी की कमी से ज्यादा उसको व्यर्थ करने या कोताही से खर्च करने या अपेक्षित रूप से संचय नहीं कर पाने का ही परिणाम होता है कि हम पानी की कमी का रोना रोते हैं। खासतौर पर इस समय जब पानी की अफरात है, उसे सालभर संचय करने के लिए उसकी आवक-जावक पर नजर रखना जरूरी है। जान लें कि बाढ़ और सूखा प्रकृति के दो पहलू हैं, बिल्कुल धूप और छांव की तरह लेकिन बारिश बीतते ही देशभर में पानी की त्राहि-त्राहि की खबरें आने लगती हैं।
क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की है कि बारिश का इतना सारा पानी आखिर जाता कहां है? इसका कुछ हिस्सा तो भाप बनकर उड़ जाता है और कुछ समुद्र में चला जाता है। कभी सोचा आपने कि यदि इस पानी को अभी सहेजकर न रखा गया तो भविष्य में क्या होगा और कैसे पूरी होगी हमारी पानी की आवश्यकता। दुनिया के 1.4 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है। हम प्रकृति जीवनदायी संपदा है यानी पानी हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है और इस चक्र को गतिमान रखना हमारी जिम्मेदारी है।
Sign in
Sign in
Recover your password.
A password will be e-mailed to you.
[post-views]
Comments are closed.