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ट्रंप के संरक्षणवाद को काउंटर करेगी मोदी-जिनपिंग-पुतिन की तिकड़ी

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जोहासंबर्ग । दक्षिण अफ्रीका के जोहासंबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन के लिए भारत,चीन और रूस के राष्ट्राध्यक्ष इस समय में मुलाकात कर रहे हैं, जब पूरी दुनिया के सामने डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के चलते ट्रेड वॉर की स्थिति बनी हुई है। अमेरिका ने अमेरिका फर्स्ट की बात करते हुए भूमंडलीकरण की विपरीत दिशा में कदम उठाना शुरू किया है। वहीं भारत, चीन और रूस सहित कई विकाससील देशों को अपने कारोबार का विस्तार करने के लिए भूमंडलीकरण की दिशा में तेज गति से आगे बढ़ने की मजबूरी है।
ब्रिक्स संगठन की 2018 सम्मेलन के एजेंडे के मुताबिक सदस्य देश जोहासंबर्ग से मौजूदा आर्थिक चुनौतियों से लड़ने के लिए किसी नए विकल्प को सामने पेश कर सकते हैं। जानकारों का मानना है कि सम्मेलन के दौरान सदस्य देश न्यू डेवलपमेंट बैंक की पूंजी में इजाफा करते हुए ब्रिक्स सीआरए (कंटिनजेंट रिजर्व एग्रीमेंट) के साथ-साथ ब्रिक्स पेमेंट और रैंकिंग व्यवस्था की नींव रख सकते हैं।

इस फैसले से अमेरिकी वैश्विक ढांचे के विपरीत समानांतर व्यवस्था खड़ी करने की क्षमता का प्रदर्शन करते हुए ब्रिक्स के प्रमुख देशों को अमेरिका के ट्रेड वॉर से अपना बचाव करने का एक रास्ता मिल सकता है। गौरतलब है कि मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर दो प्रमुख प्रवृतियां काम कर रही हैं। पहली प्रवृति भूमंडलीकरण की विपरीत दिशा में आगे बढ़ने की है। दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने न सिर्फ वैश्विक कारोबार और अंतरराष्ट्रीय संबंध के नए नियमों को लिखा बल्कि इन नियमों को इस तरह लिखा कि वैश्विक स्तर पर उसका पलड़ा हमेशा भारी रहे।
लिहाजा, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया में अस्तिव में आए सभी अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे संयुक्त राष्ट्र, डब्लूटीओ, विश्व बैंक,आईएमएफ, समूह-7, नाटो इत्यादि सहित अहम क्षेत्रीय संगठन जैसे ईयू और नाफ्टा न सिर्फ अमेरिका के नेतृत्व में काम करते रहे बल्कि इनका निर्माण भी इसतरह किया गया

कि जिसमें अमेरिका का प्रभुत्व इन संगठनों पर बना रहे। लेकिन बीते कुछ दशकों के दौरान इन संगठनों में रूस की सहभागिता कम हुई और चीन ने अपनी आर्थिक क्षमता को बढ़कर इन संगठनों पर अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देने का काम किया। इसके चलते अमेरिका को वैश्विक स्तर पर पहली प्रवृत्ति का सहारा लेते हुए अमेरिका फर्स्ट का नारा बुलंद करना पड़ा।
अमेरिका फर्स्ट के चलते ही ट्रंप को पेरिस क्लाइमेट समझौते, ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप, ईरान डील और यूनेस्को जैसे संगठनों और समझौतों से बाहर निकलना पड़ा। इसके अलावा ट्रंप अब धमकी दे रहे हैं कि वह संयुक्त राष्ट्र और नाटो से भी बाहर निकलने की पहल कर सकते हैं। इन धमकियों का सहारा लेकर डोनाल्ड ट्रंप विश्व युद्ध के बाद बने संगठनों पर नया नियम थोपना चाहते हैं

जिससे अमेरिका का प्रभुत्व इन संगठनों के साथ-साथ वैश्विक कारोबार पर कायम रहे। इस पहली प्रवृत्ति से अलग वैश्विक स्तर पर दूसरी प्रवृत्ति नए भूमंडलीकरण की चल रही है। हालांकि भूमंडलीकरण की इस नई कवायद को साझे भविष्य की परिकल्पना के साथ आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। इस नई कवायद का ऐलान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने किया और 2017 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की शक्तिशाली नेशनल कांग्रेस ने भी मुहर लगा दी।

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