गुड़गांव 17, अगस्त (अजय) : सोशल मीडिया कंपनियां अपने प्लेटफार्म पर सक्रिय अराजक और उन्मादी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने अथवा अवांछित या भड़काऊ सामग्री के प्रसार को रोकने में किस तरह आनाकानी करती हैं, इससे खुद सुप्रीम कोर्ट परिचित है। बहुत दिन नहीं हुए जब सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराध के वीडियो प्रतिबंधित करने में हीलाहवाली पर गूगल, फेसबुक समेत तमाम कंपनियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।सच तो यह है कि तब इन कंपनियों ने यह तक नहीं बताया था कि वे यौन अपराध के वीडियो का प्रसार रोकने के लिए क्या उपाय कर रही हैं? भीड़ की हिंसा पर सुनवाई कर चुका सुप्रीम कोर्ट इससे भी अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि हाल के समय में ऐसी हिंसा के कुछ मामले इसलिए सामने आए, क्योंकि सोशल मीडिया के जरिये यह अफवाह फैलाई गई कि अमुक-अमुक जगह बच्चे चोरी करने वाले दिखे हैं।
बेहतर होता कि सुप्रीम कोर्ट केवल इतने भर से संतुष्ट नहीं होता कि केंद्र सरकार सोशल मीडिया हब बनाने की अपनी योजना से पीछे हट रही है। उसे ऐसे कुछ उपाय भी सुझाने चाहिए थे जिससे सोशल मीडिया के किस्म-किस्म के प्लेटफॉर्म पर सक्रिय अराजक तत्वों पर काबू पाने में मदद मिलती। जैसे इसमें दोराय नहीं कि सोशल मीडिया संवाद-संपर्क के साथ प्रचार-प्रसार का एक प्रभावशाली माध्यम है। वैसे ही यह भी एक तथ्य है कि इस माध्यम का अनुचित इस्तेमाल भी जमकर किया जा रहा है। कुछ अराजक समूह और यहां तक कि आतंकी संगठन तो अपने प्रसार के लिए सोशल मीडिया पर ही निर्भर हैं।
E-Mail: pbknews1@gmail.com, [ Whats App & Cont. 9211510857 ]
Comments are closed.