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एशियाई और यूरोपीय लोगों को प्रचंड डेंगू का खतरा अधिक :शोध

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वाशिंगटन : एक शोध में पता चला है कि एशियाई और यूरोपीय देशों के लोगों को डेंगू के प्रचंड रूप का सर्वाधिक खतरा है। दोनों महाद्वीपों के बाशिंदों की जेनेटिस संरचना उन्हें इस बीमारी के गंभीर प्रकार के प्रति संवेदनशील बनाती है। बढ़ते वैश्वीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण ऊष्णदेशीय संक्रमण पूरे विश्व में फैल रहे हैं।

हालांकि यह जरूरी नहीं है कि दुनिया के सभी देशों की आबादी इसके प्रति संवेदनशील हो। शोधकर्ताओं ने कहा कि एशियाई और यूरोपीय लोगों में (आई3एस) जीन समान रूप से मौजूद है। इस कारण इन दोनों ही महाद्वीपों के लोगों को अफ्रीकी मूल के लोगों के मुकाबले डेंगू के गंभीर रूप के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। इन्हें डेंगू शॉक सिन्ड्रोम होने की आशंका भी अन्य के मुकाबले अधिक होती है।
पूर्वी एशिया और अमेरिका के ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र में डेंगू बुखार स्थानिक है। मगर इस बीमारी के लिए जिम्मेदार विषाणु के वाहक एडीज जीनस मच्छरों के हाल ही में उत्तरी अमेरिका और यूरोप में फैलने के साथ ही इन क्षेत्रों में भी यह बीमारी पहुंच गई है। डेंगू के विषाणुओं के कारण साधारण से गंभीर परिस्थिति पैदा हो सकती है। इससे आमतौर पर होने वाला बुखार होने के अलावा हानिकारक डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस) भी हो सकता है।

दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में डेंगू का प्रचंड रूप देखने को मिलता है और इसके लिए स्थानीयता को काफी समय से जिम्मेदार माना जाता रहा है। यह बात पूर्व में हुए एपिडेमियोलॉजिकल रिसर्च में भी साबित हुई है। हालांकि जेनेटिक संरचना के कारणों के बारे में अब तक कोई शोध नहीं हुआ था। एक नए शोध में थाईलैंड के तीन अस्पतालों में 2000 और 2003 के बीच डेंगू का दंश झेलने वाले 411 मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन किया।

शोधकर्ताओं ने रक्त वाहिनियों में जलन के लिए जिम्मेदार दो जीन का पता लगाया, जो गंभीर डेंगू के मामलों में देखने को मिला। इसी तरह चार जीन चयापचय से संबंधित थे, जो सामान्य डेंगू बुखार के खतरों के लिए जिम्मेदार थे।

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