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पिछले साल की तुलना में दोगुनी हो गई पत्रकारों की हत्या, अफगानिस्तान सबसे बुरा

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न्यूयॉर्क। खोजी पत्रकारों के लिए कार्य के दौरान सबसे जोखिम भरा समय होता है और ऐसे समय में उन पर जानलेवा हमले मामली बात है। उनके काम के प्रतिशोध में हत्याओं की संख्या बीते साल की तुलना में दोगुनी हो गई है। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने बुधवार को एक रिपोर्ट के द्वारा इस बात की जानकारी दी। अमेरिका स्थित सऊदी पत्रकार जमाल खाशोगी की तुर्की में हत्या को रेखांकित करते हुए सीपीजे ने रिपोर्ट में कहा, 2018 में पत्रकारों को उनकी पत्रकारिता के प्रतिशोध के लिए निशाना बनाकर हत्या करने के मामलों की संख्या पिछले साल की तुलना में दोगुनी हो गई है।
इस साल एक जनवरी से 15 दिसम्बर तक कुल 53 मौतें दर्ज की गईं, जबकि 2017 में इसी अवधि में 47 और 2016 में 50 पत्रकारों की हत्या हुई थी। इन मौतों में से कम से कम 34 की प्रत्यक्ष रूप से हत्या की गई, जबकि 2017 में 18 पत्रकारों की हत्या की गई थी। सीपीजे ने कहा, अफगानिस्तान सबसे घातक देश है और इस वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत पत्रकारों के लिए घातक देशों की सूची पांचवें नंबर पर है।

संस्था ने कहा कि 13 पत्रकार दक्षिण एशियाई देशों में मारे गए, जिनमें से नौ इस्लामिक स्टेट द्वारा 30 अप्रैल को किए गए दो आत्मघाती हमलों में मारे गए थे। इसमें दूसरा हमला किया ही उस वक्त गया था, जब पत्रकार घटना स्थल पर जुटने लगे थे। सीपीजे ने कहा कि कुल 34 पत्रकार को उनके काम के प्रतिशोध में मौत के घाट उतारा गया, 11 की मौत दो तरफ से गोलीबारी या लड़ाई में हुई और अन्य आठ को खतरनाक अभियानों पर भेजा गया था जहां वे मारे गए।

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