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देश में पर्यावरण के दुश्मन हैं प्लास्टिक व पॉलिथिन : शरद गोयल

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गुरुग्राम, 22 दिसम्बर (अजय) : विकास की दौड़ ने दुनियां को बहुत कुछ दिया है पर बहुत से बहुत ज़्यादा उससे छीना भी है। जहां इस विकास ने उसे उत्पादन की नई से नई तकनीकें दी हैं। विज्ञान के उपहार दिए हैं, भारी संख्या में उद्योग दिए हैं, वहीं उससे प्रकृति की निकटता, शांत रम्य वातावरण, चैन की नींद और स्वच्छ वातावरण के वरदान छीन लिए हैं। उक्त विषय में नेचर इंटरनेशनल के अध्यक्ष शरद गोयल ने बोलते हुए कहा कि प्रगति व प्रदूषण आज के मानव ने भौतिक विकास के नए आयाम स्थापित कर दुनिया को मुटठी में कर लिया है। आज दुनिया भर में विमानों, रेलों,बसों, कारों, और दूसरे संसाधनों के साथ मोबाइल फोन के जरिये घूमना व संपर्क करना आज बहुत ही आसान हो गया है। हर पल कारखाने तरह-तरह के उत्पाद उगल रहे हैं, विकास और विनाश दोनों के लिए हमारे पास आणविक और परमाणविक के साथ ही इससे भी बड़ी ऊर्जा शक्तियां हैं। रहना, खाना, पीना, घूमना आसान हो गया है पर इतनी प्रगति के बावजूद मुश्किल हुआ है तो चैन से जीना, स्वस्थ रहना और अपने पर्यावरण को बचाना। इसकी सबसे बड़ी वजह है लगातार बढ़ता प्रदूषण का स्तर। आदमी ने खुद की तरक्की के लिए सबसे ज़्यादा प्रहार पर्यावरण पर ही किया है।

बस नारा न रहे ‘पर्यावरण बचाओ : हालांकि ‘पर्यावरण बचाओ’ का नारा मानव की चिंता को जाहिर करता है और बताता है कि जो कुछ हो रहा है उससे वह अनभिज्ञ नहीं हैं। उसके ऊपर पर्यावरण का जो भीषण संकट मंडरा रहा है उससे वह वाकिफ है पर मज़े की बात यह है कि नारा अपनी जगह कायम है और पर्यावरण को बिगाडऩा, प्रदूषित करना अपनी जगह जारी है। कितने ख़तरे: उद्योग, परिवहन, संचार, विज्ञान के नाम पर लगातार होता प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, वृक्षों का बढ़ता अंधाधुंध कटान, बनती ऊंची – ऊंची इमारतें, बढ़ती सड़कें, उद्योग व फैक्ट्रियां, हर हाथ में आता मोबाइल, हर घर एक न एक वाहन, शान की प्रतीक बनती बड़ी गाडिय़ां शहरों में असहनीय स्तर तक जाता शोर और जल,वायु और आकाशीय प्रदूषण ने तो जीना मुहाल कर दिया है और सौ में से करीब 70 लोगों के जीवन पर कैंसर जैसी घातक बीमारी का ख़तरा भी मंडरा रहा है। इन सारी वजहों से आज। चिंता व चिंतन का विषय: आज पर्यावरण दिवस के बहाने से गौर करने की जरुरत है कि आज पर्यावरण इतना प्रदूषित क्यों हो रहा है और उसे बचाने के लिए मई के महीने में भी ओला वृष्टि के समाचार हैं तो दिसंबर में भी तापमान 40 डिग्री तक जा रहा है।

मौसम चक्र, जलवायु, मानसून, वर्षा, गर्मी, सर्दी सब के सब गड़बड़ा गए हैं और हम हर सांस के साथ जितना ज़हर पीने के लिए बाध्य हैं। चिंतन का विषय है कि आखिर उससे कैसे बचा जा सकता है। आज यदि महानगरों में रहने वालों के जीवन पर नजर डालें तो वह कितनी बीमारियों से ग्रस्त व त्रस्त मिलते हैं, सब्जियां, फल, भोजन, हवा,पानी सबके सब इतने प्रदूषित हो गए हैं कि यह तय कर पाना मुश्किल हो गया है कि क्या खाया जाए व क्या छोड़ा जाए। शहरों ही नहीं गांवों में भी अब शुद्ध हवा व पीने योग्य पानी मिलना दूभर है, लगातार बढ़ते जल व वायु प्रदूषण से वहां का जीवन नारकीय हो गया है।

इस प्रवृत्ति को रोकें :

वायु मंडल में सी एफ सी गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है,वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन, धुआं, धूल व वाहनों से निकला हुआ पेट्रोल व डीजल मिश्रित उत्सर्जन बढ़ रहा है, सरकार जब एक खास किस्म के वाहनों पर रोक लगाती है तो कंपनियां उसी वाहन को घटे दामों में बेच खुद को तो बचा लेती हैं पर पर्यावरण को खतरे में डाल देती र्है। इस प्रवृत्ति को रोकना होगा। प्रदूषण के कारण: पर्यावरण प्रदूषण के कारणों पर जब एक नजर डालते हैं तो तेजी से बढ़ता औद्योगीकरण, बढ़ती हुई जनसंख्या, रासायनिक पदार्थों का अतिशय प्रयोग, रेडियोधर्मी विकिरण,पराबैंगनी किरणों का वायुमंडल में प्रवेश, ओजोन परत का क्षय, ‘एसिड रेन’, वाहनों से निकलता धुआं, फैक्ट्रियों के अपशिष्ट, हवा में जहरीली गैसों का सम्मिश्रण,एटामिक रिएक्टरों की बढ़ती संख्या, लगातार बढ़ते मोबाइल फोन नोन बायोडिग्रेडेबल उत्पाद च प्लास्टिक तथा पोलिथिन का बढ़ता प्रयोग,शोर आदि न जाने कितने ही कारण मौजूद हैं जो कि स्वयं मानव ने ही तैयार किये हैं यानी हमने खुद ही अपने लिए जाल बुन रखा है पर्यावरण प्रदूषण के रूप में। आफ्टर इफेक्ट्स: मगर जब बात आती है समाधान की तो आम आदमी सरकार पर और सरकार एक्सपर्ट पर निर्भर हो जाते हैं, न आम आदमी अपना दायित्व निभाने को तैयार है और न ही सरकार कुछ ज्यादा करने की इच्छा शक्ति दर्शाती है।

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