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स्लिप डिस्क की समस्यां से अब युवा भी हो रहे पीड़ित : डॉ. श्रृंगारी

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बादशाहपुर, 21 जनवरी (अजय) : भागती दौड़ती जिंदगी में अब स्लिप डिस्क की समस्यां ज्यादा बढ़ने लगी है और यह समस्यां अब युवाओं में भी ज्यादातर देखने को मिल रही है उक्त विषय में सोहना रोड टीकरी में स्थित पोलरिस अस्पताल के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रृंगारी ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारी रीढ़ की हड्डी में 33 कशेरुकाएं (हड्डियों की शृंखला) होती हैं, और ये कशेरुकाएं डिस्क से जुड़ी रहती हैं। ये डिस्क प्राय: रबड़ की तरह होती है, जो इन हड्डियों को जोड़ने के साथ उनको लचीलापन प्रदान करती है। स्लिप डिस्क के कारण दर्द और बेचैनी होती है। अगर स्लिप डिस्क के कारण कोई स्पाइनल नर्व दब जाती है तो सुन्नपन और तेज दर्द की समस्या हो जाती है। गंभीर मामलों में सर्जरी की आवश्यकता होती है।

क्या हैं कारण व जांच के तरीके.

डॉ. श्रृंगारी कहते है कि स्लिप डिस्क की परेशानी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक होती है। शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना, खराब पॉस्चर में देर तक बैठे रहना, मांसपेशियों का कमजोर हो जाना, अत्यधिक झुककर भारी सामान उठाना, शरीर को गलत तरीके से मोड़ना या झुकना, क्षमता से अधिक वजन उठाना, रीढ़ की हड्डी में चोट लगना, बढ़ती उम्र इसका मुख्य कारण होती है। इसके लिए सबसे पहले डॉक्टर छूकर शारीरिक परीक्षण करते हैं। इसके बाद रीढ़ की हड्डी व आसपास की मांसपेशियों में आई गड़बड़ी को समझने के लिए एक्स-रे, सीटी स्कैन्स, एमआरआई व डिस्कोग्राम्स आदि की सलाह दी जाती है।

उपचार के विकल्प.

डॉ. श्रृंगारी कहते है कि स्लिप डिस्क का उपचार कई तरह से किया जाता है। किस व्यक्ति के लिए कौन सा उपचार ठीक रहेगा, ये इस पर निर्भर करता है कि समस्या कितनी गंभीर है। उपचार में लापरवाही न की जाए तो स्लिप डिस्क के 90 फीसदी मामलों में ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती है। .

फिजियोथेरेपी.

अधिकतर लोगों को व्यायाम करने से बहुत लाभ होता है। स्लिप डिस्क के पीड़ितों को फिजियोथेरेपिस्ट की निगरानी में ही व्यायाम करना चाहिए। वह ऐसे व्यायाम कराते हैं, जो कमर व आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं। दर्द कम करने के लिए एक्सरसाइज करने के 10 मिनट पहले हॉट पैक का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। मरीज की हालत को देखते हुए डॉक्टर मांसपेशियों के खिंचाव व दर्द दूर करने के लिए मसल्स रिलेक्सर्स व नैक्रोटिक्स दवाएं देते हैं।

ओपन सर्जरी

डॉ. श्रृंगारी कहते है कि लगातार छह सप्ताह तक व्यायाम व दवाओं का सेवन करने पर भी आराम नहीं मिलता, तो डॉक्टर परीक्षण के बाद सर्जरी की सलाह दे सकते हैं। सर्जन बिना पूरी डिस्क निकाले, डिस्क के क्षतिग्रस्त भाग को निकाल सकता है, इसे माइक्रोडिस्केक्टॉमी कहते हैं। गंभीर मामलों में डॉक्टर डिस्क बदलते हैं और कशेरुकाओं को एक साथ फ्यूज कर देते हैं। लैमिनेक्टॉमी और स्पाइनल फ्यूजन, स्पाइनल कॉलम को स्थिरता देते हैं।

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