बादशाहपुर, 13 अप्रैल (अजय) : शताब्दियों के बाद 15 अगस्त 1947 को देश में समाज ने पुनः राजनीतिक आजादी के वातावरण में सांस लेने का अवसर प्राप्त किया। आजादी के लिए लम्बे संघर्ष के अन्तिम छोर पर जो स्वतन्त्रता संघर्ष के अगुआ थे, उन्होंने देश में शासन व्यवस्था के लिए लोकतान्त्रिक प्रणाली को निर्धारित किया और उसके अन्तगर्त ही 17वीं लोकसभा के लिए आज देश में चुनाव प्रारम्भ हो चुका है । लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली के लिए चयन की व्यवस्था एक महत्वपूर्ण भूमिका में होती है । अतः राजनीतिक दल अथवा स्वतन्त्र विचार रखने वाले प्रतिभावान लोग भी जब इस चयन व्यवस्था के अन्तगर्त उतरते हैं तो उन्हें मतदाताओं को अपने आचार और विचार से तो अवगत कराना होता है साथ ही मैं देखता हूँ कि वे मतदाता को मतिभ्रम करने के भी अनेक प्रसंग प्रस्तुत कर देते हैं । इस चयन प्रक्रिया में घोषणा-पत्र, जिसे आज अनेक नए-नए शब्दों से संजोया जा रहा है घोषित किए जाते हैं । संकल्पपत्र, प्रतिज्ञापत्र, हम निभाएंगे, हमारे इरादे आदि-आदि ऐसे अनेक शब्दों के जाल, राजनीति की चौखट पर बिछाकर मतदान को लुभान का प्रयास आज स्वाभाविक और सामान्य रूप से हो रहा है। उक्त विचार नेचर इंटरनेशनल के अध्यक्ष शरद गोयल ने व्यक्त करते हुए कहे।
वास्तव में यह घोषणा-पत्र, पत्र के अन्तगर्त किए गए वायदे अथवा विचार जनता के प्रति वचनबद्धता है । और सामान्य भाषा में मैं यदि कहूं तो वचनबद्धता भंग करने के लिए बल्कि दिए गए वचनों का पालन करना ही अनिवार्य होना चाहिए। आप भी इस बात से सहमत होंगे कि सामान्य व्यवहार में यदि कोई अपने वचनों का पालन करने में असमर्थ रहता है तो उसे कहीं ना कही दोषी माना जाता है । यदि सामान्य व्यक्ति वचन भंग करने पर दोषी समाज में माना जाता है तो फिर से राजनीतिक दल जो समाज को घोषणापत्र के माध्यम से वचन देने हैं और उन वचनों को निर्धारित अवधि में पूरा नहीं करते तो उन्हें दोषी क्यों नहीं माना जाता ? मेरा मत है कि यदि घोषणापत्र में किए गए वायदे राजनीतिक दलों को पूरा करने की बाध्यता हो तो देश की राजनीति में जो अनेक प्रकार की विकृतियां छायी हुई हैं स्वतः दूर हो जाएंगी । जरूरत है कि राजनीतिक दलों के घोषणात्रों में कही गई बातों को अमल में लाने की बाध्यता कानूनी तौर पर कर दी जाए और घोषणापत्र के वायदे अथवा इरादे पूरा न होने को आपराधिक मामलों के दायरें में लाया जाए ।
मेरा यह सुझाव कि घोषणापत्र में उल्लेखित वायदों को अमल में न लाने को दोषी ठहराया जाए और उन्हें आपराघिक मामलों के दायरें में लाया जाए, जितना सरल और सहज दिखता है, यह उतना ही कठिन अमल में लाना होगा। क्योंकि जिन लोगों ने उपरोक्त राय को अमल में लाना है उनके लिए यह अत्यन्त कठिन है क्योंकि यह उनके ही हितों के विरूद्ध है । अतः यह आशा करना कि यह राय व्यवहार में अमल लाई जाएगी और राजनीतिक क्षेत्र की विकृतियां दूर होंगी, अभी समझ लेना कठिन होगा । मेरा सुझाव है कि इस राय को अमल में लाने के लिए समाज के प्रभुद्ध वर्ग को आगे आना चाहिए और संगठित होकर इस दिशा में जुटना चाहिए । मेरा विश्वास है कि एक बार यदि समाज का जागृत और चेतन वर्ग इस विचार के पीछे खड़ा हो गया तो सरकारें चाहे वो किसी भी दल की हों उन्हें विवश होकर घोषणा पत्र को कानूनी दायरे में लाना पड़ेगा और इस प्रकार देश की राजनीति का स्वच्छ और स्वस्थ मार्ग प्रशस्त बन सकेगा ।
फ़ोटो : शरद गोयल
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