बादशाहपुर, 5 अक्टूबर (अजय) : 31 अक्तूबर से 6 नवम्बर तक सरकार हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी सतर्कता जागरूकता सप्ताह मना रही है और वर्षो से मनाती आ रही है। बड़ा सवाल यह है कि एक सप्ताह के इस जागरूकता अभियान से क्या हमारे समाज में विशेषत सरकारी विभागों में पूर्ण रूप से अपनी पकड़ बना चुका भ्रष्टाचार कुछ कम हो पाता है। हालाँकि सरकार ने केंद्रीय सतर्कता आयोग से लेकर सरकार के हर विभाग में अपना अलग से सतर्कता विभाग होता है जो यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि उस विभाग में भ्रष्टाचार नहीं है। छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा सभी विभागों का सतर्कता विभाग यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि उसका विभाग भ्रष्टाचार मुक्त है। किन्तु आजादी के 75 साल के अमृत महोत्सव मनाने के साथ-साथ क्या हम भ्रष्टाचार मुक्त भारत का भी कभी महोत्सव मना पाएंगे। आज भ्रष्टाचार हमारे निजी जीवन से लेकर सरकारी व सामाजिक जीवन में इतनी गहरी जड़ पकड़ चुका है कि इसको निकाल बाहर फैंकना एक सप्ताह के जागरूकता अभियान के बस की बात नहीं है। तो क्या हमे भ्रष्टाचार की परिभाषा बदलनी होगी अगर हम सूक्ष्म में सोचे तो मात्र पैसे को रिश्वत के तौर पर लेना देना ही भ्रष्टाचार है। मेरी माने तो नहीं यही एक भ्रष्टाचार का मापदंड नहीं है। अपितु अपने पद का दुरूपयोग करके किसी भी प्रकार की सरकारी सुविधा का बेवजह इस्तेमाल करना भी भ्रष्टाचार है। हालाँकि भ्रष्टाचार आज इतने ज्ञापक तौर पर फ़ैल गया है कि इन चीजों को भ्रष्टाचार की श्रेणी में आम नागरिक ने लाना बंद कर दिया है। अगर किसी सरकारी अधिकारी के बच्चे या उनके परिवार के लोग अपने निजी कार्य के लिए सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल करते है तो वो भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। आज सरकार का कोई भी विभाग ऐसा नहीं जिसको हम पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार मुक्त कह सके। यहाँ तक की सरकारी नौकरी के लिए यह भ्रष्टाचार ही लोगों को आकर्षित करता है और यही कारण है कि छोटे से छोटे पद के लिए बड़ी से बड़ी शैक्षणिक योग्यता वाले लोग उस नौकरी को पाने के लिए प्रयास करते है। हालाँकि 7 वे और 8 वे वेतन आयोग के लागू होने के बाद सरकारी विभागों में मिलने वाला वेतन कोई कम नहीं है। किन्तु प्रतिस्पदा की भावना भ्रष्टाचार की मूल जड़ है। आज छोटे से छोटे स्तर पर काम करने वाला कर्मचारी अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलाना चाहता है। हालाँकि यह उसका अधिकार भी है। और मेरा ऐसा मानना है कि सरकारी शिक्षा संस्थानों का गिरता हुआ स्तर सभी को निजी क्षेत्र के शिक्षा संस्थानों में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए आकर्षित करता है। बच्चों की पढाई, एक मकान और बच्चों की शादी यह मुख्य तीन कामों में अत्यंत धन भ्रष्टाचार के मूल कारणों में गिनता हूँ। महानगरों में और उनके आस पास गाँव से प्लायन करना और महानगरों में जीवनयापन का बढ़ता हुआ खर्च भी कही न कही भ्रष्टाचार को आमंत्रित करता है।
आवश्यकता है समाज में एक ऐसा वातावरण बनाने की जिसमे सामाजिक कुरीतियों के विरोध के साथ साथ आम जन को एक अच्छी जीवन शैली के लिए अधिक दिखावे के प्रयोग न करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये। सरकार शिक्षा संस्थानों स्वास्थ्य संस्थानों और रहने के लिए निवास जैसी मूलभूत जरूरतों को इस प्रकार से सरकारी कर्मचारी पूरी करें अपने सीमित संसाधनों में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है। दूसरी और भ्रष्टाचार नियंत्रण कानून के लम्बे समय से लंबित पड़े मामले अदालतों में जल्दी सुनाये जाये दोषियों को जल्द से जल्द सजा हो जिससे भ्रष्टाचार करने से पहले हर व्यक्ति के दिमाग में सजा का खोंफ हो। अन्यथा सतर्कता जागरूकता सप्ताह मनाना मात्र एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा। प्रतिस्पदा के दौर में महानगरों में जीवनयापन का खर्चा भी पिछले कुछ वर्षो से अत्यधिक महंगा हो गया है। किन्तु इसका यह अभिप्राय बिलकुल भी नहीं कि हम अधिक पैसा कमाने के लालच में अपने आत्मा की आवाज न सुनकर अनाब शनाब तरीके से भ्रष्टाचार करके पैसा कमाने का प्रयास करे।
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