गुरुग्राम, 18 दिसम्बर (ब्यूरो) : चीन ने एक बार फिर उसी दुस्साहस को दोहराने की कोशिश की, जैसा उसने दो वर्ष पहले लद्दाख की गलवन घाटी में किया था, लेकिन इस बार भारत ने इसका करारा जवाब दिया है। भारतीय सेना ने इस बार उसे तुरंत जवाब देते हुए अपनी ताकत का लोहा मनवाने का कार्य किया है। उक्त बातें अजीत यादव ने कही। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प ने कोविड महामारी के दौरान गलवन घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी भिडंत की याद दिला दी। तवांग में हमारे सैनिकों ने चीन का बखूबी प्रतिकार किया और उसके सैनिकों को मार भगाया। जहां गलवन में 20 भारतीय सैनिकों को बलिदान देना पड़ा था, वहीं तवांग में किसी पक्ष का ऐसा कोई नुकसान नहीं हुआ। इतना अवश्य है कि तवांग में कुछ भारतीय सैनिक घायल हुए। हमेशा की तरह यह पता नहीं चला कि इस झड़प में कितने चीनी सैनिक घायल हुए, लेकिन माना जा रहा है कि उनकी संख्या भारतीय सैनिकों से अधिक है।
अजीत यादव ने कहा कि यह ठीक है कि तवांग में अतिक्रमण के इरादे से आए चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया गया, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि चीन आगे ऐसी हरकत नहीं करेगा। आशंका यही है कि वह अरुणाचल, लद्दाख, सिक्किम या फिर अन्य कहीं फिर से वैसी ही हरकत कर सकता है, जैसी उसने हाल में तवांग में की। यह हरकत तब की गई, जब कुछ ही समय पहले बाली में जी-20 सम्मेलन में दोनों देशों के शासनाध्यक्षों की भेंट हुई थी। फिलहाल यह कहना कठिन है कि चीन ने तंवाग में अतिक्रमण कर एलएसी पार करने की कोशिश क्यों की, लेकिन माना जाता है कि इसका एक कारण भारतीय और अमेरिकी सेना के बीच वह संयुक्त युद्ध अभ्यास हो सकता है, जो हाल में उत्तराखंड में हुआ। चीन न केवल भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती निकटता से चिढ़ रहा है, बल्कि क्वाड की सक्रियता से भी।
अजीत यादव ने कहा कि चूंकि चीन अपने को विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बनाने के लिए तत्पर है, इसलिए वह भारत के बढ़ते हुए कद को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं। इसी कारण वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष में नहीं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि चीन लगातार भारत हितों की अनदेखी कर रहा है। वह आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान का साथ देने में लगा हुआ है और यहां तक कि उसके आतंकियों का बचाव भी कर रहा है। पिछले कुछ समय में वह पाकिस्तान के पांच आतंकियों को सुरक्षा परिषद की पाबंदी से बचा चुका है। चूंकि भारत चीनी वस्तुओं का एक बड़ा आयातक है और उसके साथ व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है, इसलिए भारत को चीनी वस्तुओं पर निर्भरता कम करने के लिए जतन करने होंगे। इस दिशा में मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत जो प्रयास किए गए हैं, वे नाकाफी साबित हुए हैं।
अजीत यादव ने कहा कि भारत चीन से न केवल कच्चा माल आयात कर रहा है, बल्कि तमाम छोटी-बड़ी वस्तुएं भी। इसके लिए एक हद तक हमारा उद्योग जगत भी जिम्मेदार है। वह उन वस्तुओं का निर्माण करने में नाकाम हैं, जिनका चीन से आयात किया जाता है। यह समझना होगा कि व्यापार का पलड़ा भारत के पक्ष में झुके बगैर चीन पर दबाव नहीं बनाया जा सकता। फिलहाल भारत के पास इसके सिवाय कोई और विकल्प नहीं है कि एक ओर वह जहां चीनी वस्तुओं पर निर्भरता कम करने के ठोस उपाय करे, वहीं दूसरी ओर चीन से लगती सीमा पर अपने आधारभूत ढांचे को और अधिक मजबूत करे। इससे ही भारतीय सैनिक तत्परता के साथ एलएसी की रक्षा कर कर पाने और चीनी सेना की घुसपैठ रोकने में सक्षम होंगे।
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