नई दिल्ली, 23सितंबर। केरल हाईकोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति से तलाक लेने से रोकना क्रूरता के समान है. यानी अगर शादी असफल हो गई है और पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं, तो ऐसे में तलाक लेने से नहीं रोका जाना चाहिए. जस्टिस ए.मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की डिवीजन बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. बेंच ने कहा, “लोगों ने अब एक समझदार तरीका अपनाया है. अगर दोनों के बीच विवाह असफल हो गया, यानी दोनों को लगता है कि अब वो अपना रिश्ता आगे जारी नहीं रख सकते तो वे आपसी सहमति से तलाक ले लेते हैं.”
तलाक से इनकार करने वाले फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की याचिका पर हाईकोर्ट की ये टिप्पणी आई.
तलाक की याचिका साल 2011 में दायर की गई थी और समझौते के प्रयास विफल रहे थे. पति ने गुजाराभत्ता के लिए पत्नी को 10 लाख रुपये और दस सेंट जमीन की पेशकश की थी लेकिन उसने अपनी मांग बढ़ा दी.
हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायालय के गलियारों में एक दशक से अधिक समय बीत चुका है. अदालतें वास्तविक वादियों के लिए हैं, अहंकारी और अजीब व्यवहार वाले लोगों के लिए नहीं.
पति ने आरोप लगाया कि महिला यानी उसकी पत्नी ने केवल पैसे ऐंठने के लिए उससे शादी की और उसके अवैध संबंध हैं. पत्नी ने सभी आरोपों से इनकार किया है.
अदालत ने कहा कि ये साबित करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है कि जोड़ा एक साथ रह सकता है. दोनों के बीच लड़ाई किसी उचित कारण के लिए नहीं थी, बल्कि अहंकार को जीतने और एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिशोध लेने के लिए थी.
हाईकोर्ट ने समर घोष बनाम जया घोष (2007) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब पति यानी पत्नी में से किसी को भी लगे कि दोनों के रिश्तें पर आगे जारी नहीं रह सकते तो ऐसे में तलाक लेने से रोकना दूसरे साथी के प्रति मानसिक क्रूरता होगी. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने तलाक लेने की इजाजत दी
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