बादशाहपुर, 26 जुलाई (अजय) : शिवजी का प्रिय माह सावन चल रहा है। सावन का महीना दो चीजों के लिए जाना जाता है। नेचर इंटरनेशनल के अध्यक्ष शरद गोयल ने कहा कि सावन माह एक कामदेव और दूसरा प्रकृति का उत्सव के लिए माना जाता है, पहले प्रकृति के उत्सव की बात कर लेते हैं। सावन की हरियाली में सराबोर वातावरण में मिट्टी की मदहोशक सोंधी खुशबू में पवन की झोकों पर नाचती-इठलाती टहनियां, उफनती नदियां, मेघ-मल्हार की अठखेलियां प्राकृतिक तान छेड़कर पशु-पक्षी-मानव सब को झूमने पर मजबूर कर देती है। सावन में नहाई हुई प्रकृति पर जब सुरज की किरणें पड़ती है तो लगता है जैसे उसकी सुंदरता में चार-चांद लग गया हो। आसमान से हो रहे मेघगर्जन को सुनकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे खंभों पर जलती चिमनियां बार-बार चौंक रही हैं। इस मौसम में घर-आंगन, सभी कुछ सुहावना लगने लगता है। वातावरण ऐसा खुशनुमा हो जाता है जैसे घर में किसी नए मेहमान के आने की खुशी हो। भला ऐसी रम्य और काम्य ऋतु में कौन होगा जो उतस्व नहीं मनाना चाहेगा। इस उत्सव का आनंद उस ग्वाले से पूछिए जो सावन में तेज थपेड़े मारती हवा में बंशी बजाता हुआ जंगलों में पशु चराता है। इस मौसम में गीली, भीगी गाय-भैंसों के साथ लौटने का उत्सव और अनुभव उस ग्वाले से एकबार जरूर पूछना चाहिए। इस सावन का आनंद उन गांव की नवयुवतियों से पूछी जानी चाहिए जो वर्षा होते ही निकल पड़ती है गांव के बाहर आम या पीपल की शाखा की तरफ और उसी पर रस्सी का झूला डालकर झूलने लगती है। उस वक्त उसके बाल हवा के साथ छितरे पड़े रहते हैं। पल्लू का पता नहीं होता, वह तो बस आसमान से गिर रही बूंदों में भिगती है और उस वक्त उनका चेहरा देखकर लगता है जैसे पूरी प्रकृति इनके अंदर खिल खिलाकर मुसकुरा रही हो। इस मौसम में नारी-देह उत्सव मनाती है।
इस मौसम में संगीत का भी अपना महत्व होता है। सावन की बौछारों के साथ लोग जब कुमार सानु, अल्का याग्निक और उदित नारायन की आवाज में गीत बरसात के मौसम में तन्हाई के आलम में सुनते हैं तो लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत उन्हें बारिश में बाहर निकलकर नाचने पर मजबूर कर देता हैं। इसके अलावा सावन का महीना, पवन करे सोर, जियारा रे झूमें ऐसे, जैसे बनमां नाचे मोर’ तो लगता है जैसे सावन का टाइटल सॉन्ग हो। कुल मिलाकर सावन और संगीत एक-दुसरे के पूरक हैं।
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