PBK News (अजय) : व्यापारी नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक के जरिये जो धोखाधड़ी की उसे 11 हजार करोड़ रुपये का घोटाला बताया जा रहा है। यह राशि बैंक के कुल बाजार पूंजीकरण के एक तिहाई के बराबर और बैंक के एक साल के मुनाफे का दस गुना है। इसी कारण यह घोटाला बैंकों की गिरती साख पर बट्टा लगाने और आम आदमी के भरोसे को डिगाने वाला है। सरकारी क्षेत्र के बैंकों में घपले-घोटाले कोई नई बात नं हैं। छोटे-मोटे घोटाले न जाने कब से हो रहे हैं, लेकिन पीएनबी का यह घोटाला जितना बड़ा है उतना गंभीर भी। इसने मोदी सरकार के सामने यह चुनौती खड़ी कर दी है कि वह इससे पार पाए-न केवल वित्तीय, बल्कि राजनीतिक तौर पर। मोदी सरकार को अन्य सवालों के साथ इस सवाल से भी दो-चार होना पड़ रहा है कि करीब चार साल के अपने कार्यकाल में वह बैंकों में जरूरी सुधार क्यों नं लागू कर सकी? मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से यह कह र है कि संप्रग शासन में जो तमाम अनाप-शनाप कर्ज बांटे गए वे एनपीए में तब्दील हो चुके हैं और उसके कारण बैंक संकट में हैं। संसद के बजट सत्र में यह आरोप खुद प्रधानमंत्री ने कांग्रेसी नेताओं पर मढ़ा था। एक आंकड़े के अनुसार बैंकों का कुल फंसा कर्ज यानी एनपीए करीब आठ लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। चिंता की बात यह है कि इसके बढ़ने की आशंका है। चूंकि बैंक फंसे कर्ज वसूल पाने में नाकाम हैं इसलिए उन्हें इस कर्ज को बट्टे खाते में डालना पड़ रहा है। इससे उनकी वित्तीय हालत बिगड़ र है और सरकार को सरकारी कोष के पैसे यानी आम जनता की गाढ़ी कमाई उन्हें बतौर पूंजी उपलब्ध करानी पड़ रही है ताकि उनकी माली हालत सुधर जाए, लेकिन आखिर यह सिलसिला कब तक कायम रहेगा? क्या सरकार यह दावा करने की स्थिति में है कि अगले दो सालों में बैंकों को दो लाख 11 हजार करोड़ रुपये की पूंजी मुहैया कराने के बाद उनका एनपीए नं बढ़ेगा? सरकार को यह अहसास होना चाहिए कि उसकी ओर से उठाए गए कदमों के बाद भी बैंकों में वांछित सुधार नं आ पाया है। इसी का ताजा प्रमाण पीएनबी घोटाला है। खबरों के लिए मेल करें : pbknews1@gmail.com खबरों के लिए सम्पर्क करें : 9811513537
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