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बड़ा सवाल : क्या उमेश अग्रवाल की नही बन रही बात…

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गुरुग्राम, 17 अगस्त (ब्यूरो) : आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर गुरुग्राम की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। शहर में एक बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या उमेश अग्रवाल इस बार आम आदमी पार्टी (AAP) के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे या नहीं। उमेश अग्रवाल, जो पिछले काफी समय से आप पार्टी के नेता है और भाजपा के पूर्व विधायक है जिनकी पिछली बार पार्टी ने टिकट काट दी थी, और उन्हें बिना चुनाव लड़े घर बेठना पड़ा था, इस बार चर्चा हैं लेकिन कांग्रेस और AAP के बीच गठबंधन की अनिश्चितता के कारण स्थिति स्पष्ट अभी नहीं दिखाई पड़ रही है।

 स्थानीय राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गुरुग्राम में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच सीधी टक्कर होने वाली है। ऐसे में AAP के उम्मीदवार के रूप में उमेश अग्रवाल की भूमिका पर संदेह बना हुआ है। लोगों का कहना है कि गुरुग्राम में AAP का संगठन बेहद कमजोर है और उसका जनाधार भी काफी कम है। इससे उमेश अग्रवाल को समर्थन देने वाले लोग खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि पिछली बार उमेश अग्रवाल ने नामांकन वापस ले लिया था, जिससे उनके समर्थकों को निराशा का सामना करना पड़ा था। इसके चलते उन्हें पिछले पांच वर्षों तक राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर सक्रियता से दूर रहना पड़ा। इस दौरान उनके समर्थकों को कोई ठोस परिणाम नहीं मिला, जिससे उनकी साख को भी नुकसान पहुंचा है।

 इस बार उमेश अग्रवाल के चुनाव लड़ने को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अगर कांग्रेस और AAP का गठबंधन नहीं होता है, तो उमेश अग्रवाल के पास दो विकल्प होंगे—या तो वे AAP के टिकट पर चुनाव लड़ें या फिर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरें। दोनों ही स्थितियों में उन्हें कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि उमेश अग्रवाल चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं, तो उन्हें अपनी रणनीति बहुत सोच-समझकर बनानी होगी। गुरुग्राम में AAP का कमजोर संगठन और कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधी टक्कर के कारण उनके लिए चुनावी राह आसान नहीं होगी। अगर वे चुनाव लड़ने का निर्णय लेते हैं, तो उन्हें न केवल अपने समर्थकों को एकजुट करना होगा बल्कि गुरुग्राम में AAP का जनाधार भी मजबूत करना होगा, जोकि अब इतना जल्दी सम्भव नही है। अंततः उमेश अग्रवाल की राजनीतिक भविष्यवाणी इस पर निर्भर करेगी कि वे आगामी चुनावों के लिए क्या निर्णय लेते हैं। क्या वे AAP के साथ रहेंगे या किसी अन्य रणनीति पर काम करेंगे? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है, और इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।

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