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अविश्वास का सामना कर भाजपा ने बाजी अपने पाले में की : कुसुम यादव

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गुडगाँव 22 जुलाई (अजय) : न उन्हें हारने की चिंता थी, न इन्हें जीत की उम्मीद। किसी को कम से कम अपनी ताकत को लेकर कोई भ्रम नहीं था। यह विशुद्ध राजनीतिक चौसर था, जिसमें सबने अपनी गोटियां बड़े सलीके से खेल लीं। अब किसकी गोटी, कितनी दूर तक साथ रहेगी, यह तो वक्त ही तय करेगा। विपक्ष का मकसद अविश्वास प्रस्ताव के बहाने सरकार को कठघरे में खड़ा करना था, तो सत्ता पक्ष विपक्ष को उसकी जगह दिखाना चाह रहा था। कौन कितना सफल रहा, यह तय होना बाकी है। सच है कि चार साल के शासन में मोदी सरकार के सामने पहली बार अग्नि परीक्षा की घड़ी आई। यह जीत-हार की नहीं, अपना संतुलन बनाए रखने की परीक्षा थी। इसे इसलिए भी सबकी नजरों में रहना था कि इसकी नौबत कल तक दोस्त रहे तेलुगू देशम की बदौलत आई थी। वही तेलुगू देशम, जिस पर भाजपा ने कभी खासा भरोसा जताया था। यह दोस्त के दुश्मन में तब्दील होने की घड़ी भी थी। कुछ दोस्तों, अपनों की परख की भी।
सब कुछ कितना भी प्रत्याशित रहा हो, राजनीति आश्वस्त होने की चीज नहीं होती, सो यहां भी कोई आश्वस्त नहीं था, इसलिए किसी ने इसे हल्के में नहीं लिया। सत्ता पक्ष ने इसे उसी चुनौती के तौर पर देखा कि जरूरत पड़े, तो ऐसा संख्या बल साथ दिखे, जो विपक्ष खासकर कांग्रेस के लिए मुसीबत बन जाए। कम ही होता है कि अपने ही खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से कोई सरकार इतनी सहज दिखाई दे। आमतौर पर तो ऐसे प्रस्ताव को न लाने या नामंजूर करने की ही रणनीति रहती है, लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ। अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने की राजनीतिक चाल चलकर भाजपा ने एक तरह से पहले ही बाजी अपने पाले में करने की कोशिश की

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