खालिस्तानी मूवमेंट के चलते भारत और कनाडा, इन दोनों मुल्कों के बीच संबंधों में खटास आ गई है। पीएम मोदी ने ‘जी20’ शिखर सम्मेलन के दौरान, दिल्ली पहुंचे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के सामने ‘खालिस्तान’ का मुद्दा उठाया था। ट्रूडो के स्वदेश लौटते ही, दोनों मुल्कों के बीच उस वक्त खट्टास आनी शुरु हो गई, जब कनाडा ने भारत से द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत रोकने की बात कही। उसके बाद कनाडा ने भारत के वरिष्ठ राजनयिक को निष्कासित कर दिया। हालांकि, इसके जवाब में भारत ने भी कनाडा के राजनयिक को पांच दिन में देश छोड़ने के लिए कह दिया है। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अब ‘खालिस्तान’ का धुआं, लपटों में तब्दील होने लगा है। इस गंभीर मुद्दे पर न केवल दो मुल्कों के बीच संबंधों में खट्टास आ रही हैं तो वहीं दूसरी ओर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का बलिदान भी दांव पर लगा है।
इस मुद्दे को लगातार भड़काया जा रहा
इंटेलिजेंस एवं सिक्योरिटी एक्सपर्ट कैप्टन अनिल गौर (रि.) बताते हैं कि वैसे तो लंबे समय से खालिस्तान का धुआं उठ रहा था, लेकिन ‘किसान आंदोलन’ के दौरान यह मामला सामान्य तौर पर लोगों के बीच पहुंचा। दिल्ली में किसान आंदोलन में जब खालिस्तान के पोस्टर लगे तो जबरदस्त हलचल मच गई थी। किसान नेताओं के बीच इस मुद्दे ने विभाजन की रेखा खींचने का प्रयास किया। बाद में लालकिले पर खालिस्तान का झंडा लगाने का जो प्रयास हुआ, वह किसी से छिपा नहीं है।
उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की सूची में भले ही ‘एसएफजे’ के संस्थापक गुरपतवंत सिंह पन्नू को आतंकी घोषित किया गया है, मगर वह लगातार इस मुद्दे को भड़का रहा है। कभी तो वह पाकिस्तान के लाहौर में जाकर खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह की बात करता है तो कभी कनाडा में ऐसी घोषणा करता है। पन्नू ने किसान आंदोलन में युवाओं को भड़काया था। भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने और कानून व्यवस्था को खराब करने के मकसद से लोगों के लिए भारी भरकम इनामी राशि की घोषणा करता है। पीएम मोदी, गृह मंत्री और सरकार में बैठे दूसरे लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देता है। उसने पंजाब और कश्मीर में ‘जी20’ की बैठकों के दौरान हमला कराने की चेतावनी दे डाली थी।
खालिस्तानी आतंकियों पर नकेल कसना जरूरी
किसान आंदोलन के बाद खालिस्तान की जड़ों को खुराक मिलनी शुरू हो गई थी। पंजाब के कई शहरों में खालिस्तान के पोस्टर लगे थे। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के गेट पर भी खालिस्तान के पोस्टर लगा दिए गए। इन घटनाओं के साथ ही कनाडा में बैठी टोली भी सक्रिय हो गई। उन्होंने वहीं से पंजाब के युवकों को गुमराह करने का प्रयास शुरू कर दिया। खुद को जरनैल सिंह भिंडरांवाले की तरह स्थापित करने की कोशिश में लगा अमृतपाल सिंह, खुलेआम कानून व्यवस्था को चुनौती देने लगा। उसने ‘वारिस पंजाब दे’, संगठन खड़ा कर लिया। उसने खुद को नए भिंडरांवाले के तौर पर पेश किया।
अमृतपाल सिंह के कार्यक्रमों में ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगना आम बात हो चली थी। जब उसे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस एवं केंद्रीय एजेंसियां सक्रिय हुईं तो वह उनकी नाक के नीचे से भाग निकला। कई सप्ताह के बाद उसने खुद पुलिस के सामने सरेंडर किया। बतौर अनिल गौर, जम्मू-कश्मीर में भले ही केंद्रीय एजेंसियों एवं सुरक्षा बलों की मुस्तैदी से आतंकवाद पर नकेल कस रही है, लेकिन अब ‘पंजाब’ में तीस वर्ष पहले जैसे हालात पैदा करने का प्रयास हो रहा है। हालांकि अभी तक पंजाब में खालिस्तानी मूवमेंट को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है, लेकिन इस मुहिम के लिए राजनीतिक समर्थन जुटाने के आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे हैं।
जरा सी ढिलाई बलिदान पर फेर सकती है पानी
जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. आनंद कुमार के मुताबिक, सरकार को खालिस्तान जैसी विचारधार पर सख्ती से लगाम लगानी चाहिए। किसी भी पक्ष द्वारा इस मामले में बरती गई जरा सी ढिलाई पूर्व पीएम इंदिरा गांधी और पूर्व मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह सहित अनेक लोगों के बलिदान पर पानी फेर सकती है। कनाडा सरकार, पंजाब की स्थिति को हल्के में न ले।
पंजाब पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों के मुताबिक, ‘एसएफजे’ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ के हाथ में खेल रहा है। पन्नू ने पाकिस्तान पहुंचकर मीडिया के सामने खालिस्तान का नया नक्शा पेश किया था। नक्शे में ‘शिमला’ को खालिस्तान की ‘भविष्य की राजधानी’ बताया गया है। विदेश में बैठा पन्नू, आईएसआई के इशारे पर पंजाब में अशांति फैलाने का प्रयास कर रहा है।
पंजाब पुलिस की इंटेलिजेंस विंग में लंबे समय तक काम कर चुके एक अधिकारी बताते हैं, हालात उतने सामान्य नहीं हैं। एक छोटी सी चूक, बड़ी तबाही का कारण बन सकती है। इससे पहले पंजाब में सीमा पार से कभी इतने ड्रोन नहीं आए।इसके पीछे कोई तो है।
खालिस्तान स्थापना दिवस’ मनाने का एलान, सार्वजनिक स्थलों पर एसएफजे के पोस्टर लगना, खालिस्तानी मुहिम के समर्थक सिमरनजीत सिंह मान का सांसद चुना जाना, शिवसेना नेता सुधीर सूरी की दिन दहाड़े हत्या, हिमाचल प्रदेश विधानसभा के बाहर खालिस्तान के पोस्टर, जनमत संग्रह की घोषणा और पुलिस के दो भवनों पर रॉकेट लॉन्चर अटैक, ये सब घटनाएं सामान्य नहीं थी।
सिख फॉर जस्टिस व सहयोगी संगठनों पर एक्शन जरूरी
खालिस्तानी संगठन, सिख फॉर जस्टिस व इससे जुड़े दूसरे समूह, कई बार जनमत संग्रह कराने की बात कह चुके हैं। इस साल 26 जनवरी को ‘पंजाब इंडिपेंडेंस रेफरेंडम’ शुरू करने का प्रयास हुआ था। जांच एजेंसियों ने कई देशों में मौजूद खालिस्तानी संगठनों पर एक्शन के लिए कदम आगे बढ़ाया है। हालांकि इसमें राजयनिक एवं कूटनीतिक उपायों की मदद लेनी पड़ रही है। एसएफजे, बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स जैसे कई आतंकी संगठनों और आईएसआई का गठजोड़, इसे तोड़ने के लिए कई केंद्रीय एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं।
अगर खालिस्तान और इससे जुड़ी वारदातों को रोकना है, तो उसके लिए मुख्य टारगेट वर्ग ‘युवाओं’ को भरोसे में लेना होगा। अगर उनके पास काम नहीं होगा, तो ऐसी वारदातें बढ़ती चली जाएंगी। पंजाब में किसी भी तरह से सही, मगर खालिस्तान को थोड़ा बहुत समर्थन तो मिल ही रहा है। युवा हों या किसान संगठन, इनसे जुड़े मुद्दों पर सरकार को सतर्कता बरतनी होगी। अगर मौजूदा स्थिति में कोई ये कहे कि पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट के कोई जगह नहीं है, तो वह गलतफहमी में है। विदेश में बैठे आतंकियों को कुछ करने का मौका मिल रहा है तो इसका मतलब है कि उन्हें कुछ लोगों का समर्थन हासिल है। समर्थन का विस्तार होने में देर नहीं लगती।
कनाडा पर भारत को सख्त रूख बरकरार रखना होगा।
सिक्योरिटी एक्सपर्ट, अनिल गौर के अनुसार, कनाडा पर भारत को सख्त रूख बरकरार रखना होगा। कनाडा में बड़े स्तर पर खालिस्तान की मुहिम शुरु हुई है। पिछले दिनों कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में निकाली गई एक झांकी में खालिस्तान समर्थकों द्वारा इंदिरा गांधी की हत्या की घटना का जश्न मनाया गया। गत सप्ताह कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत से वापस लौटे भी नहीं थे कि वहां पर ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’, ‘दिल्ली बनेगा खालिस्तान जैसे नारे लगने लगे।
कनाडा में लोगों की भीड़ में बीच खड़े होकर खालिस्तानी आतंकी, गुरपतवंत सिंह पन्नू, ऐसे नारे लगा रहा था। उसने अक्तूबर में खालिस्तान को लेकर जनमत संग्रह कराने की बात भी कही। विदेश मंत्री एस जयशंकर इस मामले में कह चुके हैं, अगर आप उनके इतिहास को देखेंगे तो आप कल्पना करेंगे कि वे इतिहास से सीखते हैं और वे उस इतिहास को दोहराना नहीं चाहेंगे। मुझे लगता है कि ये एक बड़ा मुद्दा है कि क्या कनाडा अपनी जमीन को खालिस्तानियों, चरमपंथियों को हिंसा की वकालत करने के लिए दे रहा है। मुझे लगता है कि यह रिश्तों के लिए अच्छा नहीं है और खासतौर पर कनाडा के लिए तो बिल्कुल सही नहीं है।
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