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मणिपुर वायरल वीडियो केस में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच के लिए केंद्र तैयार

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नई दिल्ली, 2अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने अशांत मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए एक व्यापक प्रणाली बनाने की वकालत करते हुए सोमवार को सवाल किया कि राज्य में मई महीने से इस तरह की घटनाओं के मामले में कितनी प्राथमिकी दर्ज की गयी हैं? केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि यदि शीर्ष अदालत मणिपुर हिंसा के मामले में जांच की निगरानी करती है तो केंद्र को कोई आपत्ति नहीं है.

लंच ब्रेक के बाद जब फिर से सुनवाई शुरू हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने वायरल वीडियो को लेकर पुलिस एक्शन पर सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को निर्वस्त्र करके परेड कराई गई. ये घटना 4 मई की थी पर ज़ीरो FIR 18 मई की हुई. पुलिस को FIR दर्ज करने में ही 14 दिन लग गए. मजिस्ट्रेट को केस 21 जून को ट्रांसफर हुआ. आखिर पुलिस इतने दिनों तक क्या कर रही थी. इस पर SG तुषार मेहता ने कहा कि वायरल वीडियो के सामने आते ही 7 लोग गिरफ्तार हुए.

सुप्रीम कोर्ट ने वायरल वीडियो को लेकर पुलिस एक्शन पर सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को निर्वस्त्र करके परेड कराई गई. ये घटना 4 मई की थी पर ज़ीरो FIR 18 मई की हुई. पुलिस को FIR दर्ज करने में ही 14 दिन लग गए. मजिस्ट्रेट को केस 21 जून को ट्रांसफर हुआ. आखिर पुलिस इतने दिनों तक क्या कर रही थी. इस पर SG तुषार मेहता ने कहा कि वायरल वीडियो के सामने आते ही 7 लोग गिरफ्तार हुए.

मणिपुर वायरल वीडियो मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह दोनों पक्षों को संक्षेप में सुनेगा और फिर कार्रवाई के सही तरीके पर फैसला करेगा. अब हमारे पास कोई साक्ष्यात्मक रिकार्ड नहीं है. दोनों पीड़ित महिलाओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह स्पष्ट है कि पुलिस उन लोगों के साथ मिलकर काम कर रही थी जिन्होंने दोनों महिलाओं के खिलाफ हिंसा की और पुलिस ने इन महिलाओं को भीड़ के पास ले जाकर छोड़ दिया और भीड़ ने वही किया जो दुनिया ने देखा. दो पीड़ित महिलाओं की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल का कहना है कि उनमें से एक के पिता और भाई की हत्या कर दी गई थी. हमारे पास अभी भी शव नहीं हैं. 18 मई को जीरो एफआईआर दर्ज की गई. जब कोर्ट ने संज्ञान लिया, तब कुछ हुआ. तो फिर हमें क्या भरोसा? ऐसी कई घटनाएं होंगी. इसलिए हम एक ऐसी एजेंसी चाहते हैं जो मामले की जांच करने के लिए स्वतंत्र हो.

सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट मामले की निगरानी करेगा तो केंद्र को कोई आपत्ति नहीं है. वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र की स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक, 595 एफआईआर दर्ज की गई हैं. इनमें से कितने यौन हिंसा से संबंधित हैं और कितने आगजनी, हत्या से संबंधित हैं, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है. इंदिरा जयसिंह का कहना है कि जहां तक ​​कानून का सवाल है, बलात्कार की पीड़िताएं इस बारे में बात नहीं करतीं.वे अपने आघात के साथ सामने नहीं आते.पहली बात है आत्मविश्वास पैदा करना. आज हमें नहीं पता कि अगर सीबीआई जांच शुरू कर दे तो महिलाएं सामने आ जायेंगी. पुलिस की बजाय महिलाओं से घटना के बारे में बात करने में महिलाओं को सहूलियत होगी. एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति होनी चाहिए जिसमें नागरिक समाज की महिलाएं हों जिनके पास बचे लोगों से निपटने का अनुभव हो.

मणिपुर हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ सुनवाई कर रही है. जब मामला सुनवाई के लिए आया तो वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उन दो महिलाओं की ओर से पक्ष रखा जिन्हें चार मई के एक वीडियो में कुछ लोगों द्वारा निर्वस्त्र करके उनकी परेड कराते हुए देखा गया था. सिब्बल ने कहा कि उन्होंने मामले में एक याचिका दायर की है. मामले में सुनवाई चल रही है.

शीर्ष अदालत ने 20 जुलाई को कहा था कि वह हिंसाग्रस्त मणिपुर की इस घटना से बहुत दुखी है और हिंसा के लिए औजार के रूप में महिलाओं का इस्तेमाल करना एक संवैधानिक लोकतंत्र में पूरी तरह अस्वीकार्य है. प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने वीडियो पर संज्ञान लेने के बाद केंद्र और मणिपुर सरकार को निर्देश दिया था कि तत्काल उपचारात्मक, पुनर्वास और रोकथाम संबंधी कदम उठाये जाएं और उसे कार्रवाई से अवगत कराया जाए. मणिपुर में 4 मई की घटना का यह वीडियो सामने आने के बाद राज्य में तनाव पैदा हो गया था.

केंद्र ने 27 जुलाई को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उसने मणिपुर में दो महिलाओं की निर्वस्त्र परेड से संबंधित मामले में जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है. केंद्र ने कहा था कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी अपराध के मामले में सरकार कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति रखती है. मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

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