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दो दिनों में चीन का प्रोपगंडा वार ध्वस्त

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PBK NEWS | नई दिल्ली। दो महीने से चीन सरकार और वहां की सरकारी मीडिया ने डोकलाम विवाद को लेकर भारत के खिलाफ जो प्रोपगंडा वार शुरु किया था उसे भारतीय कूटनीति ने दो दिनों में ही ढेर कर दिया है। चाहे भारत की तरफ से सेना घटाने की बात हो या पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू की तरफ से लिखे गये पत्र में कही गई बात हो, भारत ने बेहद गंभीर कूटनीति का परिचय देते हुए हुए चीन के हर झूठ को सामने ला दिया है। बुधवार को रक्षा मंत्रालय और गुरुवार को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक एक मुद्दे पर चीन का कलई खोल दी है।

चीन का प्रोपगंडा नंबर एक

भारत ने सैनिकों की संख्या घटाई – यह चीन का सबसे ताजा प्रोपगंडा है। बुधवार को चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से एक विस्तृत बयान जारी किया कि किस तरह से भारत ने डोकलाम में अपने सैनिकों की संख्या 400 से घटा कर 40 कर दी है। जबकि भारत के विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के विश्र्वस्त सूत्रों का कहना है कि चीन के दावे के विपरीत भारत ने वहां से अपने सैनिकों की संख्या में कोई कटौती नहीं की है। असलियत यह है कि भारतीय सीमा में सड़क निर्माण का काम भी तेज हुआ है। विदेश मंत्री स्वराज ने गुरुवार को कहा कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है लेकिन उन्होंने यह याद दिलाने से भी परहेज नहीं किया कि सेना देश की सुरक्षा के लिए होती है।

प्रोपगंडा नंबर दो

ब्रिटिश शासित भारत व चीन के बीच समझौते में सीमा पर बनी थी सहमति- विवाद शुरु होने के साथ ही चीन लगातार कह रहा है कि ब्रिटिश शासित भारत ने भूटान व तिब्बत की सीमा तय करने को लेकर चीन के साथ 1890 में समझौता किया था और उसके आधार पर डोकलाम पर वह दावा भी कर रहा है। स्वराज ने गुरुवार को अपने भाषण में चीन के इस दावे को पूरी तरह से तार तार कर दिया। भारत व चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए गठित विशेष प्रतिनिधियों की वर्ष 2006 में हई बैठक में चीन ने खुद यह माना था कि ब्रिटिश भारत के साथ किया गया समझौता अंतिम नहीं था। लेकिन उस समझौते के आधार पर दोनों देशों को सिक्किम सीमा का हल निकाल सकते हैं।

प्रोपगंडा नंबर तीन

भूटान व चीन के बीच है विवाद: चीन यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि डोकलाम उसके और भूटान के बीच का विवाद है और भारत बेवजह ही उसमें कूदने की कोशिश कर रहा है। जबकि भारत और चीन के बीच वर्ष 2012 में यह सहमति बनी थी किसी तीसरे देश के साथ अगर इन दोनो देशों की सीमाओं को लेकर विवाद होता है जो उस देश के साथ बातचीत करके सुलझाया जाएगा। चूंकि डोकलाम का क्षेत्र सीधे तौर पर भारत की सामरिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ है इसलिए भारत को भी यहां अपनी बात रखने का हक है।

प्रोपगंडा नंबर चार

नेहरू के पत्र का गलत उद्धहरण: चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान में बताया गया है कि भारत के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटिश भारत के साथ किये गये समझौते का समर्थन किया था। असलियत में चीन बहुत ही चालाकी से नेहरू के पत्र की कुछ पंक्तियों का इस्तेमाल कर रहा है लेकिन जहां उन्होने दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का नया हल निकालने की बात कही है उसका जिक्र नहीं किया है।

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