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कोचिंग सेंटर हादसा : प्रशासन सदा हादसों की इंतज़ार क्यों करता है ?

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अभी हाल ही में दिल्ली के ओल्ड राजीव नगर में देश के बहुत प्रसिद्ध कोचिंग सेंटर के एक केंद्र में हुए हादसे ने कुछ क्षण के लिए लोगों के दिल और दिमाग को झकझोर दिया। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया को तब तक के लिए जब तक कोई और बड़ी खबर नहीं आती एक खबर मिल गई और प्रशासन को तत्परता दिखाने का एक मौका मिल गया। क्योंकि यह हादसा उस समय हुआ जिस समय संयोग से संसद का सत्र भी चल रहा था और हादसे का केंद्र देश की राजधानी था। हालाँकि कुछ समय बाद कुछ नहीं बदलेगा ऐसे ही हादसे देश के भिन्न-भिन्न भागों में होते रहेंगे और समय के अंतराल के बाद लोग उसको भूलते रहेंगे।

 शरद गोयल चीफ एडिटर विचार परिक्रमा एवं नेचर इंटरनेशनल के अध्यक्ष ने अपने विचारों को शब्दों का रूप देते हुए कहा कि मस्तिष्क में एक बड़ा सवाल यह आता है कि इस तरह के हादसों के बाद ही प्रशासन क्यों जागता है और सबसे बड़ी विडंबना यह है कि राजनीतिक दलों की भांति प्रशासन के विभाग भी एक दूसरे पर दोषारोपण का कार्य करते रहते है। अभी कुछ ही समय पहले पूना में एक बहुचर्चित हादसा हुआ जिसमे एक नाबालिक बच्चे ने शराब पीकर सड़क पर चलते हुए एक बच्चे को अपनी महंगी कार से कुचल कर मार दिया। उस हादसे को इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया ने इतना उछाला की प्रशासन ने तुरंत आनन-फानन में सक्रिय होकर पूना में रातो-रात दो सौ से अधिक पब और बार को या तो सील कर दिया या समाप्त बंद कर दिया। अभी कुछ ही समय पहले हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में एक स्कूल बस के ड्राईवर ने सुबह-सुबह शराब पीकर बस को दुर्घटनाग्रस्त कर दिया जिसमे 6 निर्दोष मासूम बच्चे काल की बली चढ़ गए। प्रशासन ने दो दिन चुस्ती दिखाकर पूरे जिले की स्कूल की बसों को चैक किया। ड्राईवर व मालिकों को परेशान किया उसके बाद अगले किसी हादसे की तादाद में गहरी निद्रा में सो गए।

 सरकार ने कानून बनाया हुआ है किसी भी बिल्डिंग के बेसमेंट में व्यावसायिक गतिविधियाँ नहीं की जाएगी। इसके बाद भी शहर में सरेआम बेसमेंट में बिना किसी सुरक्षा साधनों को प्रयोग में लाते हुए व्यावसायिक गतिविधियाँ धड़ल्ले से चल रही है। गुरुग्राम को ही ले तो यहाँ पर चाहे वो 29 सेक्टर मार्किट हो या कोई बैंक्वेट हॉल हो, साउथ सिटी, सुशांत लोक, डी एल एफ फेज-1, 2, 3, 4 या 5, बेसमेंट में व्यावसायिक गतिविधियाँ, बैंक्वेट हॉल, चिल्ड्रेन पार्क प्रशासन की नाक के नीचे चलाए जा रहे है। प्रशासन इंतज़ार कर रहा है कब कोई हादसा हो और वो अति उत्साह होकर सक्रिय हो और अपनी प्रशासनिक कुशलता और दक्षता का प्रदर्शन कर सके।

 कुछ वर्षों पूर्व की बात है गुरुग्राम में दर्दनाकपूर्वक हादसा हुआ जो कैबकांड के नाम से जाना जाता है। इस काण्ड में दो युवक जोकि कैब चलाते थे रात के समय में किसी अकेले युवक को लिफ्ट देते थे और उसको अगली सीट पर बिठा देते थे और पिछली सीट पर बैठा जो ड्राईवर का साथी होता था। उसके पास एक तार होती थी उसी तार से उसका गला दबा देता था और उसकी जेब से पैसे निकाल लेता था। एक युवक को मारने के बाद उसकी जेब से मात्र 22 रूपये मिले और वो उस लाश को दूर दराज के क्षेत्रों में सीवर में डाल देते थे। इस प्रकार उन्होंने 49 युवकों का कत्ल किया। उसके बाद प्रशासन सक्रिय हुआ और कैब चालकों पर निगरानी रखी जाने लगी। उस घटना को बीते हुए कई वर्ष हो गए है। अब गुडगाँव में सैकड़ों की तादाद में मारुती ECO वैन से धोलाक्वान, नजफगढ़, बदरपुर, फरीदाबाद, रेवाड़ी, भिवाड़ी, धारूहेड़ा, दौलताबाद, पटौदी, झज्जर आदि गंतव्य पर जाते है, मनमाना किराया लेते है इन ECO गाड़ियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और इनमे से अधिकतर दिल्ली नंबर की गाडी है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस प्रकार की सेवाएं जैसे कि गुडगाँव शहर में बहुत आवश्यक है किन्तु साथ ही आवश्यकता इस बात की है कि इन पर सरकारी नियंत्रण की भी उतनी ही आवश्यकता है लेकिन बिना नियंत्रण के यह सारा कारोबार अनधिकृत रूप से चल रहा है। ड्राईवर का नाम, पता, ड्राईवर की फोटो गाडी पर लगाई जानी चाहिए। एक नई प्रकार की सेवा महानगरों में शुरू की गई है जिसमे लोग बाग़ अपने टू-व्हीलर वाहन को ओला, ऊबर में रजिस्टर करवा लेते है और पार्ट टाइम में उसको टैक्सी की तरह चलाते है। पुन: बड़े आचार्य की बात है कि इस प्रकार के टू-व्हीलर टैक्सी पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। यहाँ तक की उनकी पहचान के लिए भी कोई नियम कानून नहीं है। कम से कम हेलमेट का रंग ही चेंज कर दिया जाए जिससे पहचान में आ जाए यह टू-व्हीलर टैक्सी वाला है। कभी किसी सवारी के साथ कोई दुर्घटना होगी तभी सरकार कानून बनाएगी। ये तो कुछ हादसे थे जो हाल फिलहाल में हुए इस प्रकार के अनेक हादसे हुए। निर्भया हत्याकांड के बाद दिल्ली की बसों में बहुत सख्ती हो गई थी और समय के साथ-साथ यह सख्ती नरमी में बदल गई। ऐसे अनेकानेक उदाहरण है किन्तु सब हादसों से एक ही सवाल खड़ा होता है कि प्रशासन सामान्य परिस्थितियों में कहा सोया रहता है। अगर प्रशासन सामान्य परिस्थितियों में गहन जांच करता रहे तो शायद यह हादसे ना हो या कम हो। पर दुर्भाग्य से इस देश का प्रशासन शायद कोई कार्यवाही करने के लिए हादसों की इंतज़ार करता रहता है।

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