[post-views]

लखनऊ में राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मेलन शुरू

56

PBK NEWS | लखनऊ । उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और चुनौतियों पर विचार मंथन को आज लखनऊ के योजना भवन में राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मेलन शुरू हो गया। सुबह दस बजे इस सम्मेलन का उद्घाटन कुलाधिपति एवं राज्यपाल राम नाईक ने किया। सम्मेलन में परीक्षा प्रक्रिया में सुधार, सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग आदि कई बिंदुओं पर विचार किया जा रहा है।

अपर मुख्य सचिव संजय अग्रवाल के अनुसार सम्मेलन में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसपी सिंह, राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरआर यादव, डा. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक, महात्मा गांधी काशी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पृथ्वीश नाग विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखेंगे। तत्पश्चात उप मुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा का संबोधन होगा। अपराह्न दो बजे धन्यवाद ज्ञापन छत्रपति शाहूजी महाराज के कुलपति प्रो. जेवी वैशंपायन करेंगे।

बस तीन मुद्दे, आर्थिक ढांचा, शोध के संसाधन और इनोवेशन
शिक्षा के क्षेत्र एक दशक से बढ़ी प्रतिस्पर्धा में राज्य विश्वविद्यालय खुद को कही पीछे पाते हैं। उनमें अगुवाई करने की छटपटाहट है लेकिन, संसाधनों की कमी आड़े आ जाती है। आर्थिक ढांचा मजबूत करने, शोध के संसाधन बढ़ाने और तकनीकी क्षेत्र में इनोवेशन बढ़ाने के लिए कुलपति पहले भी आवाजें उठाते रहे हैं और आज जब वे कुलाधिपति राज्यपाल राम नाइक की अध्यक्षता में हो रहे सम्मेलन में उनके रूबरू होंगे तो अपेक्षाओं का आसमान छूना लाजिमी ही है। कुलपतियों के इस कुंभ में होने वाले अमृत मंथन पर सबकी निगाहें रहेंगी। अहम प्रश्न यह है कि विश्वविद्यालयों को उनकी वर्तमान स्थिति से उबारकर आगे ले जाने में यह मंथन कितना सहायक होगा?
शिक्षा की चुनौतियों का पहाड़ जस का तस
उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के साथ शिक्षण संस्थानों में प्रशासनिक सुधार का रोडमैप तैयार करने के लिए गुरुवार को जब राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपति योजना भवन में साथ बैठकर मंथन करेंगे तो पिछले साल दैनिक जागरण की ओर से आयोजित कुलपति फोरम में आये चर्चा के बिंदु शिक्षाविदों के इस समागम में दिशासूचक की भूमिका निभाएंगे। खासतौर पर इसलिए भी कि कुलाधिपति के रूप में कुलपति सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले राज्यपाल राम नाईक ने जागरण कुलपति फोरम में उच्च शिक्षा के सामने विद्यमान जिन चुनौतियों का जिक्र किया था, वे आज भी ज्यों की त्यों बरकरार हैं।
पिछले साल 27 सितंबर को राजधानी के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित जागरण कुलपति फोरम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए राज्य विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षकों के 45 से 50 फीसद पद रिक्त होने का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने कहा था कि यह उच्च शिक्षा के लिए कैंसर जैसी स्थिति है। दुर्भाग्य से प्रदेश में उच्च शिक्षा का यह मर्ज जस का तस है। समय के साथ पाठ्यक्रमों में निरंतर बदलाव और सुधार की भी उन्होंने वकालत की थी। यह कहते हुए कि यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह विद्यार्थियों के साथ अन्याय और विकास में बाधक होगा। छात्रों की बढ़ती तादाद को देखते हुए राज्यपाल ने विश्वविद्यालयों को तेजी से ई-गवर्नेंस अपनाने की नसीहत भी दी थी। कुलपति सम्मेलन में वह इन बिंदुओं पर अब तक हुई प्रगति की समीक्षा भी करना चाहेंगे।
शोध और नवाचार को विश्वविद्यालयीय शिक्षा की सबसे कमजोर कड़ी बताते हुए राज्यपाल ने कहा था कि इसके जो परिणाम आने चाहिए थे, वे नहीं मिल पा रहे हैं। शोध और नवाचार को लेकर जो दृष्टिकोण होना चाहिए, वह नदारद है। जाहिर है कि कुलपति सम्मेलन में शोध और नवाचार की उत्कृष्टता पर भी उनका फोकस रहेगा। उत्तरपुस्तिकाओं को जांचने में विलंब के कारण समय से रिजल्ट न घोषित होने पर भी उन्होंने अप्रसन्नता जतायी थी। इस सिलसिले में समयबद्धता के अनुपालन पर भी उनका जोर होगा। राज्यपाल ने इस पर भी अफसोस जताया था कि उच्च शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का छह प्रतिशत खर्च होना चाहिए, जो नहीं हो पा रहा है। कुलपति सम्मेलन में विश्वविद्यालयों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ और स्वावलंबी बनाने पर भी मंथन होगा। कुलपतियों का कार्यकाल तीन से बढ़ाकर पांच वर्ष करने की भी वह पैरोकारी करते आये हैं। सम्मेलन में वह इस बिंदु को भी धार देंगे। लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुसार विश्वविद्यालयों में नियमित तौर पर छात्रसंघ चुनाव कराने के भी वह हिमायती रहे हैं और कुलपतियों के समागम में इस पर भी चर्चा करेंगे।

नैतिक मूल्यों की चिंता
जागरण कुलपति फोरम में राज्यपाल ने कहा था कि युवाओं को सही दिशा देना उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालयों की सबसे बड़ी चुनौती है। उनका इशारा उच्च शिक्षा को नैतिक मूल्यों से जोडऩे की ओर था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने शिक्षा के माध्यम से चरित्रवान देशभक्त पैदा करने की जरूरत बतायी थी। वहीं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो.जमीरुद्दीन शाह ने नैतिकता के दायरे में शिक्षकों को लाते हुए उन्हें अनुशासित रहने की सलाह दी थी।

कुलपतियों की अपेक्षाएं
-उच्च शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की जरूरत
-उच्च शिक्षा की पहुंच बढ़ाने की आवश्यकता
-राज्य विश्वविद्यालयों को सरकार से ज्यादा अनुदान मिले
-विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के शिक्षकों का डिजिटल डेटाबेस तैयार किया जाए
-शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए एकेडमी बनायी जाए
-उच्च शिक्षा में हो तकनीक का भरपूर प्रयोग
-शोध की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए एक बोर्ड ऑफ सुपरवाइजर्स हो
-साफ-सुथरे ढंग से कराये जाएं छात्रसंघ चुनाव
-विद्यार्थियों के छोटे-छोटे समूह बनाकर गांवों और छोटे कस्बों में भेजे जाएं
-पुराने डिग्री कॉलेजों को ज्यादा से ज्यादा स्वायत्तता देने की जरूरत
-मेडिकल पाठ्यक्रमों में इंटर्नल परीक्षा के साथ राष्ट्रीय स्तर की एग्जिट परीक्षा प्रणाली लागू की जाए
आर्थिक ढांचा मजबूत करे राज्य सरकार
-प्रो. वीके सिंह (कुलपति- दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय)
विश्वविद्यालय का ढांचा अंतरराष्ट्रीय होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शैक्षिक एवं शोध कार्यों में हो रहे बदलावों के साथ कदमताल करने में आर्थिक कठिनाइयों के कारण विश्वविद्यालयों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आर्थिक संसाधनों की कमी एवं अन्य कठिनाइयों के कारण विश्वविद्यालयों का बहुत सारा समय संसाधन जुटाने एवं समस्याओं का समाधान ढूंढऩे में चला जाता है। राज्य विश्वविद्यालयों को वैश्विक मानक पर बेहतर बनाने के लिए आवश्यक है कि इनका आर्थिक ढांचा मजूबत करने में राज्य सरकार ध्यान दे। जिन समस्याओं एवं चुनौतियों से विश्वविद्यालय जूझ रहे हैं उनका त्वरित निदान होना आवश्यक है।
विभिन्न परियोजनाओं में पदों के सृजन के लिए भी विश्वविद्यालयों को राज्य सरकार की अनुमति का इंतजार करना पडता है। बेहतर होगा कि ऐसी व्यवस्था बने जिससे ऐसे मामलों में राज्य सरकार के स्तर से प्राथमिकता के आधार पर त्वरित निर्णय हो सके। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय जैसे कई ऐसे विश्वविद्यालय हैं, जहां संबद्ध महाविद्यालयों की संख्या में कमी होने के चलते आय के स्रोत भी उसी अनुपात में सीमित हो गए हैं। यद्यपि आवासीय विश्वविद्यालय होने के नाते शैक्षणिक एवं प्रशासनिक ढांचा काफी बड़ा है। विश्वविद्यालय का बहुत सा धन का जो शैक्षणिक वातावरण के विकास में खर्च होना चाहिए वह वेतन मद में व्यय हो जाता है। वर्तमान में राज्य सरकार ने गोरखपुर विश्वविद्यालय के वेतन मद का अनुदान फ्रीज कर रखा है, जो कि मात्र 8 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष है, जबकि व्यय लगभग 54 करोड़ रुपये का है।
विश्वविद्यालय में जिन निर्माण परियोजनाओं की स्वीकृति प्राप्त होती है, उनका कार्य निर्माण एजेंसियों से कराया जाता है। निर्माण एजेंसियां प्राय: समय से कार्य पूर्ण नहीं कर पातीं, जिससे उसका लाभ विश्वविद्यालयों को यथा समय प्राप्त नहीं हो पाता। विश्वविद्यालयों से बार-बार अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी गुणवत्ता में वृद्धि करें और नैक मूल्यांकन कराकर अपनी गुणवत्ता प्रमाणित करें। यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि विश्वविद्यालयों में शिक्षक संवर्ग सहित अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भारी कमी है। एक तरफ जहां प्रतिवर्ष शिक्षक व अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं, दूसरी तरफ वर्षों से नई नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं। विश्वविद्यालय की राज्य सरकार से अपेक्षा है कि वह उपर्युक्त चुनौतियों को ध्यान में रखकर रिक्त पदों पर नियुक्ति की अनुमति प्रदान करे।

प्रैक्टिकल ओरिएंटेड हो इंजीनियरिंग की पढ़ाई
-प्रो. विनय कुमार पाठक 
(कुलपति-डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय)

सूबे में इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट की पढ़ाई को और बेहतर व गुणवत्तापरक बनाने के लिए जरूरी है कि इसे अधिक से अधिक प्रैक्टिकल ओरिएंटेड किया जाए। कम्युनिकेशन व साफ्ट स्किल की ट्रेनिंग सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य होनी चाहिए। विद्यार्थियों का जितना अधिक इंडस्ट्री से इंटरेक्शन होगा उतने ही अच्छे परिणाम सामने आएंगे। अभी यूपी में इंडस्ट्री काफी कम हैं, ऐसे में विद्यार्थियों को ट्रेनिंग दिलाने की व्यवस्था करना कठिन होता है। राज्य सरकार तमाम अच्छे कदम उठा रही है, ऐसे में उम्मीद है कि आगे आने वाले समय में यह दिक्कतें भी दूर होंगी।
फिलहाल विदेश की यूनिवर्सिटीज से अधिक से अधिक एमओयू किया जाए और विद्यार्थियों को ट्रेनिंग दिलाने पर जोर दिया जाए। अभी इनोवेशन व इन्क्यूबेशन सेंटर खोले जा रहे हैं और इसे अधिक से अधिक बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। जितने अधिक नव प्रयोग विद्यार्थी करेंगे उतना अधिक देश को लाभ होगा। सरकारी इंजीनियङ्क्षरग कॉलेजों में शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं, ऐसे में अच्छी शिक्षा देने में कठिनाई होती है। इन पदों को जल्द से जल्द भरकर अच्छी शिक्षा देने पर जोर दिया जाए। प्रयोगशालाओं की स्थित अच्छी नहीं है, ऐसे में उसके लिए अच्छे उपकरण की व्यवस्था होनी चाहिए।
फैकल्टी डेवलपमेंट ट्रेनिंग प्रोग्राम को अच्छे ढंग से सभी इंजीनियङ्क्षरग कॉलेजों में लागू करने पर ध्यान दिया जा रहा है। पिछले वर्षों में बड़ी संख्या में ऐसे प्रोग्राम आयोजित किए गए और शिक्षकों को नई टेक्नोलॉजी से रूबरू करवाया गया। आगे इस पर और फोकस किए जाने की जरूरत है। मैसिव ओपन आनलाइन कोर्स (मूक्स) के माध्यम से विद्यार्थियों को ज्ञानार्जन करने का मौका दिया जाना चाहिए। अच्छे विशेषज्ञों की मदद से तैयार इन मूक्स के माध्यम से विद्यार्थियों को अच्छे ढंग से अपडेट किया जा सकता है। विद्यार्थी घर में बैठे-बैठे ऑनलाइन कोर्स से बेहतर ढंग से ज्ञान अर्जित कर सकता है।
एकेटीयू में एडवांस रिसर्च सेंटर को स्थापित किया गया है। इससे अच्छे शोध को बढ़ावा देने का काम किया जाएगा। ऐसी तकनीकी जो देश व समाज का भला करे इसकी खोज करने के लिए युवा आगे आएंगे तभी देश मजबूत होगा।

आसान हो चिकित्सा शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया
-प्रो. एमएलबी भट्ट (कुलपति-किंग जार्ज मेडिकल कालेज, लखनऊ)
राज्य के सभी मेडिकल कॉलेज शिक्षकों के अभाव में जूझ रहे हैं। ऐसे में मेडिकल के छात्रों को गुणवत्तापरक शिक्षा मुहैया करा पाना चुनौती बना हुआ है। लिहाजा, सरकार को शिक्षकों की संख्या पूरी करने के लिए भर्ती प्रक्रिया में बदलाव करना होगा।
वर्तमान में केजीएमयू व सैफई आयुर्विज्ञान संस्थान दो मेडिकल यूनीवर्सिटी हैं। वहीं करीब 12 राजकीय मेडिकल कॉलेज हैं। मगर यह सभी शिक्षकों के अभाव से जूझ रहे हैं। केजीएमयू में जहां 25-30 फीसद शिक्षकों का संकट है। वहीं अन्य मेडिकल कॉलेजों में 40-50 फीसद पद रिक्त चल रहे हैं। ऐसे में जहां छात्रों को गुणवत्तापरक शिक्षा मुहैया करा पाना मुश्किल हो रहा है, वहीं चिकित्सकीय सेवाएं भी प्रभावित हो रही हैं।
शिक्षक बनने के लिए एमडी-एमएस के बाद डॉक्टर से एक वर्ष का अनुभव मांगा जाता है। यही नियम शिक्षकों की कमी पूरा करने के लिए अड़ंगा बना हुआ है। एमडी पाठ््यक्रम पीएचडी के समान है। ऐसे में एक वर्ष अनुभव की अर्हता खत्म कर सीधे ऐसे चिकित्सकों को शिक्षक के रूप में भर्ती किया जाए। वहीं चिकित्सकों की स्थायी भर्ती प्रक्रिया काफी लंबी होती है। ऐसे में योग्य चिकित्सक अन्य संस्थानों का रुख कर जाते हैं। लिहाजा स्थाई भर्ती में देरी होने पर अनुभवी चिकित्सक को टंपरेरी या एडहॉक पर भर्ती के लिए अनुमति प्रदान की जाए। वहीं मेडिकल कॉलेजों में संसाधन व उपकरणों के मानक पूरे किए जाएं।
देश में एलोपैथ चिकित्सा पद्धति का विस्तार हो रहा है। इस विधा में विदेशी गाइड लाइन पर हो रहा इलाज महंगा पड़ रहा है। इससे हर वर्ष तीन फीसद लोग गरीबी रेखा के दायरे में आ रहे हैं। ऐसे में एलोपैथ के इलाज में देश की अलग गाइड लाइन तैयार की जाए। वहीं प्राचीन पद्धति आयुष के उत्थान को बढ़ावा दिया जाए।
कुलपतियों के सम्मेलन में हम राज्य सरकार के सहयोग से केंद्र से केजीएमयू को राष्ट्रीय संस्थान का दर्जा दिलाने की मांग रखेंगे। विश्वविद्यालय के सेटेलाइट कैंपस के लिए जमीन व धन की भी मांग की जाएगी। इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड एंड वूमेन हेल्थ, इंस्टीटयूट ऑफ आर्थोपेडिक,इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्थेलमिक साइंस,इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी, इंस्टीट्यूट ऑफ इमेजिन टेक्नोलॉजी, इंस्टीट्यूट ऑफ सर्जिकल साइंस, इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन साइंस, इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस, इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेस, इंस्टीट्यूट ऑफ बेसिक मेडिकल साइंसेस के लिए बजट की मांग भी की जाएगी।

शोध के लिए बढ़ाए जाने चाहिए संसाधन
-प्रो. सुशील सोलोमन 
(कुलपति-चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय)
उत्तर प्रदेश की भूमि खेती के लिए बहुत मुफीद है। यहां की मिट्टी में अच्छी उर्वरा क्षमता है। इसके बावजूद भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो इनकी अपेक्षा प्रदेश की उत्पादकता बहुत कम है। प्रदेश में खाद्यान्न, दालों, सब्जियों व फलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जलवायु परिवर्तन के अनुसार बीजों की नई वैराइटी व आधुनिक तकनीक विकसित करने की जरूरत है। इसके लिए शोध को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है। कृषि तकनीक पर शोध कार्य करने के लिए वर्तमान समय में शोध अनुदान पर्याप्त नहीं है। कृषि विश्वविद्यालयों के कृषि वैज्ञानिक व प्रोफेसर इस कार्य में लगे हुए हैं। रिसर्च डेवलपमेंट का पैसा बढ़ाया जाना चाहिए जिससे शोध कार्य को गति प्रदान की जा सके। जलवायु परिवर्तन के अनुसार गेहूं की ऐसी प्रजाति विकसित करने की जरूरत है जो अधिक तापमान झेलने की क्षमता अधिक हो और तेज धूप में झुलसे नहीं। चावल की ऐसी प्रजाति की जरूरत है जो कम पानी में भी विकसित हो सके। इसके अलावा किसानों के खेतों तक इंटीग्रेटेड फार्मिंग (कई फसलों के साथ पशुपालन) पहुंचाना भी समय की मांग बन चुकी है।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में कृषि शिक्षा/शोध की गुणवत्ता में सुधार के लिए शिक्षकों व कृषि वैज्ञानिकों की बेहद जरूरी है। इनकी कमी के कारण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) की ओर से केवल कृषि महाविद्यालय का एक्रीडिटेशन हो सका है जबकि कालेज ऑफ इंजीनियरिंग इटावा, कालेज ऑफ होम साइंस समेत अन्य महाविद्यालयों का एक्रीडिटेशन होना बाकी है।
हमने पंचम डीन कमेटी व आइसीएआर के मानकों के अनुरूप शासन से न्यूनतम आवश्यक पदों के 60 फीसद पदों की मांग की है जो सीएसए से संबद्ध महाविद्यालयों के लिए कुल 109 पद होंगे। इसके अलावा शोध की गुणवत्ता सुधार व सस्य तकनीकी विकास के लिए शासन को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑफ व्हीट व सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑफ वेजिटेबिल्स के 697 लाख व 699.14 लाख के दो प्रस्ताव भेजे गए हैं। मेरा मानना है कि शिक्षा, शोध, प्रसार व प्रशासनिक सुधार के लिए आइसीएआर मॉडल एक्ट को शामिल किये जाने की आवश्यकता है। कृषि व कृषि आधारित विषयों पर शोध कार्य के लिए अतिरिक्त बजट का प्राविधान किया जाए। विश्वविद्यालय में शोध संसाधन काफी पुराने हो गये हैं जिनके आधुनिकीकरण व जीर्णोद्धार के लिए शासन से अनुदान अपेक्षित है।

 

Comments are closed.