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कार्यालयों में भ्रष्टाचार और क्षेत्र से भेदभाव रहेगा चुनावी मुद्दा

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गुड़गांव 30, सितम्बर (अजय) : भ्रष्टाचार को लेकर भारत देश उसके राज्यों में हमेशा दो तरह की शक्तियां काम करती रही हैं। एक शक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ शून्य सहनशीलता की नीति अपनाती है या अपनाने की कोशिश करती है। वह कभी सफल होती है तो कभी विफल। दूसरी शक्ति के लिए भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं है। न दोनों तरह की शक्तियां दोनों गठबंधनों में हैं परंतु एक में ज्यादा हैं तो दूसरे में कम। इन्हीं दो शक्तियों के बीच 2019 का लोकसभा व प्रदेश का राज्यसभा चुनाव लड़ा जाएगा। याद रहे कि अगले आम चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और दोनों तरफ से तैयारियां जोरों पर हैं। लोकसभा चुनाव के पहले कुछ राज्यों में विधानसभाओं के भी चुनाव होने हैं, लेकिन उनके परिणाम कुछ ही पूर्वाभास दे सकेंगे, क्योंकि प्रांतीय चुनाव के मुद्दे भी अलग होंगे और नेता भी।

इस देश में अब तक हुए अधिकतर चुनावों का मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार ही रहा है। मुद्दे और भी रहे, किंतु कई बार निर्णायक मुद्दा भ्रष्टाचार-विरोध ही रहा। लोकसभा के अगले चुनाव में भी भ्रष्टाचार ही मुख्य मुद्दा हो सकता है। वही पुराने चुनावी मुद्दों पर सरकार कितना खरा उतरी यह भी एक बड़ा विषय है जोकि इस बार चुनावों में रहने वाला है निसंदेह राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की अखंडता जैसे मुद्दे भी रहेंगे, परंतु भ्रष्टाचार तो जन-जन को सीधे स्पर्श करने वाला मुद्दा है। भले किसी अमीर देश का भ्रष्टाचार वहां के लोगों की सुख-सुविधा में थोड़ी सी ही कटौती करता हो, लेकिन भारत जैसे देश में सरकारी-गैर सरकारी भ्रष्टाचार तो भुखमरी भी पैदा करता है।

वर्तमान में दोनों प्रमुख गठबंधनों में ठीक-ठाक संख्या में राजनीतिक दल शामिल हैं। नमें से कुछ पालाबदल करते रहते हैं। अगला लोकसभा चुनाव आते-आते ऐसे राजनीतिक दलों का रुख कैसा रहता है, एक हद तक इस पर भी नतीजे निर्भर करेंगे।

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