PBK NEWS | नई दिल्ली। दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) प्रतिदिन के कामकाज को बाधित नहीं कर सकते। वे तभी दखल दे सकते हैं जबकि मंत्रिपरिषद केन्द्र सरकार की कार्यकारी शक्तियों में अतिक्रमण कर रही हो। सिर्फ विरोध के लिए मतभिन्नता नहीं हो सकती। अगर एलजी और दिल्ली सरकार के बीच नीतिगत मामलों में मतभिन्नता होती है तो वे सिर्फ उसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। एलजी मंत्रिपरिषद के फैसले को नकार नहीं सकते। ये टिप्पणियां बुधवार को दिल्ली सरकार और एलजी के बीच अधिकारों के झगड़े पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने की। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण करते समय केजरीवाल सरकार के वकील गोपाल सुब्रमण्यम से सवाल जवाब के दौरान ये टिप्पणियां कीं।
दिल्ली सरकार और एलजी के बीच अधिकारों की लड़ाई का मामला
चिदंबरम ने की केजरीवाल सरकार की पैरवी
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अगर मंत्रिपरिषद का फैसला संविधान के मानकों और दायरों के भीतर है तो सामान्यतौर पर एलजी और दिल्ली सरकार के बीच मतभिन्नता नहीं होनी चाहिए। जस्टिस मिश्रा ने कहा मंत्रिपरिषद की सलाह को यू ही नहीं टाला जा सकता। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मान लो दिल्ली सरकार 2000 रैन बसेरों के निर्माण का नीतिगत फैसला लेती है। इस नीतिगत फैसले पर वह एलजी से मंजूरी लेगी। एलजी उस पर कह सकते हैं कि फिलहाल आप सिर्फ 500 रैन बसेरे बनाइये और इस बीच वे फाइल मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज रहे हैं। अगर राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाती है तो ठीक है। अन्यथा एलजी कह सकते हैं कि आप सिर्फ 500 रैन बसेरे का ही निर्माण कराएंगे।
कोर्ट ने ये टिप्पणियां उस वक्त की जब गोपाल सुब्रमण्यम दलील दे रहे थे कि संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक मंत्रिपरिषद की सलाह एलजी पर बाध्यकारी होती है। उनकी इस दलील पर कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है इसकी स्थिति राज्यों से भिन्न है। यहां पर सरकार को एलजी से मंजूरी लेनी होगी।
चिदंबरम ने की केजरीवाल सरकार की पैरवी
पूर्व केन्द्रीय मंत्री, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और देश के जानेमाने वकील पी. चिदंबरम ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली की केजरीवाल सरकार की पैरवी की। चिदंबरम ने दिल्ली सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए कहा कि कोर्ट को संवैधानिक प्रावधानों और दिल्ली के कानून को इस तरह से परिभाषित करना चाहिए जिसमें लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती मिले न कि वो कमजोर हो। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज नहीं है बल्कि एक राजनैतिक कानूनी दस्तावेज है। संविधान के प्रावधानों की व्याख्या करते समय न सिर्फ संविधान बल्कि उसमें किये गए संशोधनों और उन संशोधनों को करने के पीछे के उद्देश्य और परिस्थितियों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। संविधान में संशोधन करके 239एए का प्रावधान जोड़ा गया है और दिल्ली के लिए विशेष उपबंध किये गये हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का मतलब होता है जनता। जनता का मतलब है चुने हुए प्रतिनिधि। संविधान में लोकतांत्रिक सरकार की बात कही गयी है। लोकतांत्रिक व्यवस्था संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। इसलिए कोई भी व्याख्या लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए होनी चाहिए। मामले में गुरुवार को भी बहस जारी रहेगी।
News Source:- www.jagran.com
Comments are closed.