PBK News, 31 मार्च : अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हम सब गर्व करते हैं और बड़ी शान से यह कहते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आम चुनाव के समय न्य देशों के लोग हैरान होकर देखते हैं कि इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में मतदान कैसे इतने शांतिपूर्वक ढंग से संपन्न हो जाते हैं, परंतु ऐसा लग रहा है कि इस लोकतंत्र में दीमक लगती जा रही है। बाहर से यह व्यवस्था भले ही ठीकठाक लगती हो, परंतु ंदर से खोखली होती जा रही है। चिंता के कई पहलू हैं। हाल में यह समाचार आया कि देश में ऐसे सांसदों और विधायकों की संख्या 1,765 हो गई है जिनके विरुद्ध 3,045 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। दूसरे शब्दों में 36 प्रतिशत सांसद और विधायक दागी हैं। उत्तर प्रदेश में यह संख्या धिकतम (248) है। दूसरे नंबर पर तमिलनाडु (178) है। तीसरे पर बिहार (144) है। चौथे पर पश्चिम बंगाल (139) और पांचवें स्थान पर आंध्र प्रदेश (132) है। यह सही है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह एक आदेश दिया है कि ऐसे सभी मुकदमों का निस्तारण एक वर्ष में हो जाना चाहिए और उसके तहत कई राज्यों में विशेष दालतों का गठन भी किया गया, परंतु स्थिति में कोई विशेष सुधार होता नहीं दिखता। हमारे नेता पने मामलों की सुनवाई में कोई न कोई ड़ंगा लगाने में सफल रहते हैं और इस तरह उनके मामले लंबित ही बने रहते हैं। दुर्भाग्य से पिछले दो दशकों में स्थिति में बराबर गिरावट आती गई है। वर्ष 2004 में गठित लोकसभा में आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसदों की संख्या 24 प्रतिशत थी। 2009 के चुनाव में यह बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई और 2014 के चुनाव में यह आंकड़ा 34 प्रतिशत पहुंच गया। वर्तमान में राज्यसभा के 22 फीसद सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें नौ प्रतिशत ऐसे हैं जिनके विरुद्ध गंभीर मामले हैं। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर समय-समय पर सांसदों और विधायकों की पृष्ठभूमि का खुलासा करता रहता है। ऐसी आशा की जाती थी कि जनसाधारण प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि जानने के बाद उन्हें वोट नहीं देगा, परंतु इस मामले में जातीय एवं सांप्रदायिक समीकरण का पलड़ा हमेशा भारी पड़ता रहा और माफिया एवं डॅान छवि वाले विधानसभाओं और लोकसभा में प्रवेश करते रहे। आशंका है कि गले चुनावों में यह प्रतिशत और बढ़ जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो निश्चय ही देश के लिए बड़े शर्म की बात होगी और ंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की बहुत बदनामी होगी। जिस दिन यह प्रतिशत पचास के ऊपर पहुंच गया उस दिन भारत की गणना विश्व के आपराधिक देशों में की जाने लगेगी। एक तरफ तो हम वैश्विक शक्ति के रूप में उभरना चाहते हैं, सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनना चाहते हैं और दूसरी ओर हम आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को संसद और विधानसभाओं में भेजते जा रहे हैं। यह एक भयंकर विरोधाभास है। इस स्थिति के लिए हमारे राजनीतिक दल और जनता, दोनों ही जिम्मेदार हैं। नि:संदेह ये नेता ही हैं जो दागदार प्रत्याशियों का चयन करते हैं, परंतु नेताओं के साथ-साथ आम जनता भी पनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। यह किसी से छिपा नहीं कि सब कुछ जानते हुए भी लोग आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को वोट देते हैं और इस तरह उन्हें देश के भविष्य से खिलवाड़ करने का मौका देते हैं। राजनीतिक दलों और जनता को गंभीरता से इस विषय पर सोचना पड़ेगा और देश के भविष्य के लिए पनी छोटी सोच से ऊपर उठना होगा। 1संसद के बजट सत्र के दूसरे हिस्से में बीते 15 दिनों से संसद में न्यूनतम काम हुआ है। शोरशराबे के बाद दोनों ही सदनों में कार्यवाही स्थगित होती रही। संसद निष्क्रिय सी पड़ी है। आखिर यह कैसा लोकतंत्र है? ब्रिटिश संसद में तो ऐसा कभी नहीं होता। संसद में कई महत्वपूर्ण विधेयक लंबित पड़े हैं, लेकिन कोई नहीं जानता कि वे इस सत्र में पारित भी हो सकेंगे या नहीं? यह देश की व्यवस्था के साथ एक क्रूर मजाक है। 23 मार्च को संसद सदस्यों ने शहीद भगत सिंह को श्रद्धांजलि दी, लेकिन क्या इस दौरान किसी ने यह सोचा कि आज भगत सिंह जिंदा होते तो वह ऐसी संसद के बारे में क्या सोचते? बीते दिनों संसद में हंगामे के बीच एक ऐसा विधेयक पारित हो गया जो हमारे लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है। जनप्रतिनिधित्व कानून और विदेशी चंदा नियमन धिनियम यानी एफसीआरए के तहत राजनीतिक दलों को विदेशों से चंदा लेने पर प्रतिबंध था, लेकिन ब यह प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया। राजनीतिक दल ब विदेश से चंदा ले सकते हैं और इसकी कोई जांच भी नहीं होगी। यह विधेयक 1976 से ही प्रभावी किया गया है यानी पिछले चार दशकों में जो चंदे लिए गए हैं वे सब वैध माने जाएंगे। सच तो यह है कि कांग्रेस, भाजपा और कुछ न्य पार्टियों ने इस कानून का उल्लंघन किया था। भविष्य के लिए तो दरवाजा खोल ही दिया गया है। एक तरफ तो हम साधारण आदमी से हर तरह का टैक्स वसूलते हैं और उसकेपैन एवं आधार कार्ड से संबंधित सूचनाएं लेते रहते हैं और दूसरी ओर राजनीतिक दल बाहरी देशों से कहीं से भी चंदा ले सकते हैं और उसकी कोई जवाबदेही भी नहीं होगी। इसका सीधा मतलब यह होगा कि किसी देश की कोई बड़ी कंपनी जो भारत के किसी राजनीतिक दल को भारी धनराशि चंदे के रूप में देती है वह उस पार्टी के जीतने पर देश की राजनीति को प्रभावित कर सकती है। यह हमारे लोकतंत्र की शुचिता पर एक भयंकर आघात है। 1एक और हम यह देख रहे हैं कि संसद में कुछ काम नहीं हो रहा है और दूसरी ओर संसद और विधानसभाओं में वांछनीय तत्व घुसते जा रहे हैं। देश विश्वगुरु बनने के बजाय एक आपराधिक देश बनने की दिशा में बढ़ता जा रहा है। यह सब ऐसे समय हो रहा है जब देश पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। जम्मू और कश्मीर से लगती सीमा पर पाकिस्तान बराबर संघर्षविराम का उल्लंघन कर रहा है। हमने जो भी सख्त कदम उठाए हैं उसके सकारात्मक परिणाम नहीं दिख रहे हैं।
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