नई दिल्ली : देश के 60 करोड़ लोग यानि 46 फीसदी लोग विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों की कमी से जूझ रहे हैं। यह आंकड़ा इस साल की शुरुआत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने वर्ष- 2015-16 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट पेश करते हुए बताया है। सर्वेक्षण मुताबिक देश की कुल आबादी में से आधे से अधिक लोग असंतुलित आहार लेते हैं।
उनके भोजन में ताजे फल, सब्जियां, दालें, दुग्ध व अन्य पोषक खाद्य पदार्थ शामिल नहीं होते हैं। इसमें भी महिलाओं की संख्या अत्यधिक है। लोगों को पोषक आहार लेने के प्रति जागरूक करने के लिए लिए सरकार हर साल सितंबर के पहले सप्ताह में राष्ट्रीय सुपोषण सप्ताह मनाती है।
मार्च, 2017 में आई एक रिपोर्ट में यह साफ हुआ कि जिन लोगों की दिनचर्या ठीक नहीं है या जिनकी नींद पूरी नहीं होती है, वे खाने की सुगंध के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। ऐसे लोग पिज्जा, बर्गर, चॉकलेट, पॉपकॉर्न जैसे फास्ट फूड की तरफ आकर्षित होते हैं। यही वजह है कि आज की युवा पीढ़ी के सोने जागने का पैटर्न खराब होने के चलते वह पोषक आहार से दूर हो रही है और गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रही है।
1990 से 2016 के बीच लोगों की बदलती जीवनशैली के चलते देश में संक्रामक रोगों की अपेक्षा गैर- संक्रामक रोगों की संख्या बढ़ गई। 2016 में कुल बीमारियों में हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर, उच्च रक्तचाप की हिस्सेदारी 55.4 फीसद रही। यह बीमारियां पोषण वाले आहार से परहेज और फास्ट फूड अधिक खाने की वजह से होती हैं।
इनमें प्रोटीन, विटामिन, लौह और अन्य खनिज शामिल हैं। इसके चलते ये आबादी शारीरिक कमजोरी, मानसिक तनाव और थकान की शिकार रहती है। इन जरूरी पोषक तत्वों की कमी की वजह से बच्चों का मानसिक विकास नहीं हो पाता। वे किसी चीज में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।
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