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बिगड़ती आश्रय स्थलों की दशा सभ्य समाज के लिए शत्रु

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गुड़गांव 22, अगस्त (अजय) : यह शासन-प्रशासन की नाकामी ही है कि ऐसे तत्व आश्रय स्थल चलाते पाए जा रहे जो एक तरह से सभ्य समाज के लिए शत्रु हैं। आखिर जिला प्रशासन इतने नाकारा कैसे हो सकते हैैं कि वे संदिग्ध गतिविधियों वाले किसी संरक्षण गृह की हकीकत न जान सकें? इससे लज्जाजनक और कुछ नहीं हो सकता कि बालिका अथवा नारी संरक्षण गृह में आश्रय लेने वाली लड़कियों और महिलाओं को देह व्यापार में धकेल दिया जाए।

यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि मुजफ्फरपुर और देवरिया के संरक्षण गृहों की शर्मिंदा करने वाली तस्वीर सामने आने के बाद बिहार और उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के अन्य राज्य भी इस तरह के आश्रय स्थलों की गहन निगरानी करना सुनिश्चित करें। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ऐसे स्थल आम तौैर पर उपेक्षित ही अधिक होते हैैं। दुर्भाग्य से इन स्थलों के प्रति उपेक्षा भाव शासन-प्रशासन में ही नहीं, समाज में भी है।

यह संभव नहीं जान पड़ता कि संरक्षण गृह में घोर अनुचित काम होते रहें और आसपास के लोगों को उनके बारे में कुछ भनक न लगे। किन्हीं कारणों से संरक्षण या आश्रय गृहों मे गुजर-बसर करने वाले बच्चों, लड़कियों और महिलाओं को गरिमामय जीवन जीने का अवसर मिले, इसकी चिंता सरकारों के साथ समाज को भी करनी चाहिए। अगर शासन के साथ समाज अपने हिस्से की जिम्मेदारी सही तरह निभा रहा होता तो शायद मुजफ्फरपुर और देवरिया में शर्मसार करने वाले मामले सामने नहीं आए होते।

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