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धरती की अंनंत की गहराई में छिपे होते हैं ब्‍लू डायमंड

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वाशिंगटन । हीरे-जवाहरात केवल महिलाओं के श्रंगार भर के लिए नहीं बल्कि इसके पीछे बड़े-बड़े राजे रजवाड़ों की भी दीवानगी होती है। और अगर ब्‍लू डायमंड की बात हो तो इसकी बात तो कुछ निराली हैं। दुनिया को अपनी सुंदरता से दीवाना बनाने वाला यह दुर्लभ हीरा अब वाशिंगटन म्‍यूजियम में रखा हुआ है। ब्‍लू डायमंड को द होप डायमंड भी कहा जाता है।

एक वैज्ञानिक अध्‍ययन में पता चला है कि इन हीरों का निर्माण धरती के गर्भ में 660 किलोमीटर की गहराई में होता है। ब्‍लू डायमंड का इतिहास जितना पुराना है, उससे भी ज्‍यादा दिलचस्‍प है इसके बनने की कहानी। बुधवार को प्रकाशित हुए एक अध्‍ययन में इसकी उत्‍पत्‍ति को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए। इस अध्‍ययन में दावा किया है कि यह दुर्लभी हीरा धरती के अंदर 660 किमी की गहराई में पाए जाते हैं।

यानी यह धरती के मेंटल के निचले हिस्‍से तक पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों ने इस नतीजे पर पहुंचने के लिए 46 ब्‍लू डायमंड का अध्‍ययन किया। इसमें दक्षिण अफ्रीका का वह दुर्लभ हीरा भी शामिल है जो 2016 में 25 मिलियन डॉलर में बिका था। अब तक खोजे गए कुल हीरों में ब्‍लू डायमंड (नीला हीरा) की हिस्‍सेदारी 0.02 प्रतिशत ही है लेकिन ये दुनिया के सबसे मशहूर हीरों में शुमार हैं। हीरा शुद्ध कार्बन का क्रिस्‍टेलाइन रूप है।

इसका निर्माण काफी अधिक गर्मी और दबाव के कारण होता है। ब्‍लू डायमंड को लेकर हुए शोध में पता चला है कि क्रिस्‍टलीकृत ब्‍लू डायमंड में जल को धारण करने वाले तत्‍व भी होते हैं। ये तत्‍व सदियों पहले समुद्र की सतह पर पाए जाते थे। लेकिन पृथ्‍वी की टेक्‍टोनिक प्‍लेटों में हलचल के कारण ये बेहद गहराई में चले गए। हालांकि वैज्ञानिकों को पहले से ही पता है कि इन डायमंड का नीला रंग, बोरोन तत्‍व के कारण होता है।

इस अध्‍ययन में यह भी पता चलता है कि बोरोन समुद्र के भीतर पाए जाते थे। करोड़ों साल पहले ये भूमिगत हो गए। उल्‍लेखनीय है कि 99 प्रतिशत हीरे पृथ्‍वी के भीतर 90-125 मील (150-200 किमी) की गहराई तक ही पाए जाते हैं। इस अध्ययन की अगुवाई जेमोलॉजिकल इंस्‍टीट्यूट ऑफ अमेरिका वैज्ञानिक इवान स्‍मिथ ने की। यह नेचर जरनल में प्रकाशित हो चुका है। स्मिथ ने कहा कि पहली बार ब्‍लू डायमंड की उत्‍पत्ति के बारे में तथ्‍यों के साथ प्रकाश डाला गया है।

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