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अब तो पराली भी नहीं जल रही, फिर कैसे बढ़ रहा प्रदूषण : शरद गोयल

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बादशाहपुर, 5 जनवरी (अजय) : पिछले लगभग तीन महीने से दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा तक फैला हुआ है। उक्त बातें नेचर इंटरनेशनल के अध्यक्ष शरद गोयल ने कही, उन्होंने कहा कि अक्टूबर नवंबर में प्रदूषण फैला तो देश भर में राजनीति गरम हो गई, क्योंकि किसान खेतों में पराली जलाते हैं। उसके कारण से दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का स्तर इन दिनों बढ़ रहा है। फिर शुरू हुआ इस बात का राजनीतिक फायदा उठाने का सिलसिला। जिन राज्यों में जो पार्टी विपक्ष में है पूर्ण सत्ता रूढ़ दलों पर उनकी नाकामी ठिकरा फोड़ते रहते हैं। उन्होंने कहा कि दरअसल दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण क्यों बढ़ता है इसकी सही वजह ना तो कोई भी विभाग जानने के लिए और ना ही उस पर कोई कार्यवाही करने के लिए गंभीर है। कुछ गिने चुने हथकंडे सरकारी तंत्र ने अपनाने का रिवाज बनाया हुआ है, उन्हीं को अपनाते रहते हैं। कभी कारों पर ओड इवन का फार्मूला लगाकर, कभी बीएस 4 की गाड़ियों को बैन करके और कभी ग्रेप 4 लगाकर और ग्रेप 4 लगने के बाद शुरू होता है सरकारी तंत्र का तांडव। क्योंकि इसके अनुसार बहुत सी चीजों पर प्रतिबंध लग जाता है। गोयल ने कहा कि  हमारी व्यवस्था में प्रशासन के लिए सबसे आसान है चीजों पर प्रतिबंध लगाना जैसे-भवन निर्माण के सभी कार्यों पर प्रतिबंध, डीजल की गाड़ियों पर प्रतिबंध, बीएस 4 गाड़ियों पर प्रतिबंध और जनरेटर के इस्तेमाल के साथ न जाने किन-किन चीजों पर प्रतिबंध लग जाता है। क्योंकि प्रतिबंध के साथ-साथ शुरू होता है प्रशासन का एक्टिव मोड। जिससे बनती है प्रशासन की दिहाड़ी। प्रतिबंधित कार्यों के होने पर सरकारी तंत्र आपका चालान काटेगा तो सरकारी खजाना भरा जाएगा और यदि नहीं काटेगा तो उसकी अपनी जेब भरी जाएगी और सरकार का सबसे पसंदीदा कार्य है चालान काटना।  एक करोड़ से महंगी कारों पर सरकार ग्रीन टैक्स लेती है और न जाने किन-किन चीजों पर कर लेती है और इनके साथ-साथ ग्रेप 4 लगने के बाद जो चालान काटे जाते हैं उनके द्वारा इकट्ठी की गई राशि भी इसमें सम्मिलित है। मेरा मानना है कि प्रदूषण के नाम पर किसी भी प्रकार से प्रत्यक्ष व प्रोक्ष रूप से इकट्ठी की गई धनराशि को पर्यावरण के सुधार में ही लगाया जाए। उसको सरकारी खजाने का हिस्सा ना बनाया जाए। तभी पर्यावरण सुधार के क्षेत्र में कुछ गंभीर परिणाम आने की संभावना है। अन्यथा कभी पराली और कभी कुछ ओर बहाना लेकर ऐसे ही चालान होते रहेंगे और एनसीआर वासी इस गैस चैंबर में जीने को मजबूर रहेंगे।

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