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दुनिया को प्रलय के कगार पर लाने का दोष किसी का नही हमारा होगा : शरद गोयल

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गुडगाँव, 4 जनवरी (ब्यूरो) : स्देश में े गैस के रूप में सुिधानुसार बदल लेते हैं। इससे रूस के लगातार दाम बढ़ाते जाने और पूर्ी यूरोप के अपने पुराने उपनिेशों पर बेजा राजनीतिक दबा डालने पर काफी हद तक लगाम सध गई है, लेकिन क्या इतना सब होने के बाद तेल के क्षेत्र के इन बदलाों के कारण मध्य एशिया और अफ्रीका या लातिन अमेरिका के तेल समृद्ध देशों के तानाशाह यकायक गायब हो जाएंगे और उनकी जगह लोकतांत्रिक जनमुखी सरकारें ले लेंगी? इस साल का सीधा जाब संभ नहीं, क्योंकि ऊर्जा भू राजनीतिक बदलाों का एक बड़ा कारण भले हो, पर इकलौता कारक तत् ह नहीं है। आने ाले समय में हाइड्रोकार्बन प्राकृतिक तेल के दाम किस तरह कम-ज्यादा होंगे? दुनिया के बाजार और समाजों की दशा दिशा पर्यारण प्रदूषण, उससे दुनिया के मौसम में आए अभूतपूर् बदलाों का खाद्यान्न उत्पादन तकनीकों और जीनशैलियों पर कैसा असर होगा, इन सब बातों से भी तय होगी। हेमा मालिनी चाहे जो कहें, लोगबाग अपनी मनमर्जी से गांों से शहर पलायन कर बड़े शहरों को जानबूझकर प्रदूषित नहीं कर रहे हैं। मौसमी बदलाों और िकास के बिगड़ैल हो रहे मॉडल के दबा से े इसके लिए मजबूर हो रहे हैं और यकीन मानिए, अगर हम जातिादी मुहल्लास्तरीय झगड़ों में क्त बर्बाद करते रहे और पर्यारण क्षरण की रफ्तार न रुकी तो हमारे यहां झोंपड़े-झुग्गियां ही नहीं बड़े से बड़े उद्योगपतियों और फिल्मी सितारों की कोठियां भी तिनकों की तरह बिखर सकती हैं। दुनिया को प्रलय के कगार से ापस लाने और सामाजिक रूप से समाेशी बनाने की चिंता अगर हम नहीं कर रहे तो दोष नए िश् समीकरणों का नहीं, हमारा ही होगा।

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