गुरुग्राम (अजय) : पिछली 14 फरवरी से 26 फरवरी के 12 दिन देश के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण रहे। 14 फरवरी को पुलवामा में एक आत्मघाती आतंकी हमले में ब्त्च्थ् के 45 जवान शहीद हो गये और दो दिन बाद आतंकियों से लड़ते हुए सेना की 5 जवान जिनमें एक मेजर भी थे, शहीद हो गये। इलैक्ट्रिक संचार माध्यम और सोशल मीडिया ने मानो पूरे देश में देशभक्ति की और पाकिस्तान विरोध की जैसे कोई आंधी ला दी। समाज के सभी वर्ग के लोगों ने अपनी अपनी भावनायें व्यक्त करते हुए बदले की मांग अलग-अलग तरीके से की और देश में, समाज में, एक ऐसा वातावरण बन गया कि अब भारत को पाकिस्तान से बदला लेकर ही शांत होना होगा। आम आदमी से लेकर सत्ता पक्ष के लोगों में बस एक ही विचार घूम रहा था कि अब तो देश को पाकिस्तान से बदला लेना ही है, और उसी कड़ी में 26 फरवरी को प्रातः 3ः30 बजे के लगभग भारतीय वायुसेना के जहाजों द्वारा सीमापार करके पाकिस्तान के कुछ ठिकानों पर हमला किया गया और आतंकी ठिकानों को नष्ट भ्रष्ट करने से समाचार प्रकाश में आने लगे और ऐसे भी समाचार आने लगे कि 300 से अधिक आतंकवादियों का सफाया कर दिया गया और भारी मात्रा में आतंकी ठिकानों को नष्ट करके आतंकवाद को करारा जवाब दे दिया गया।
मैं यहाँ इस ओर भी ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ कि इस सैनिक कार्यवाही से पूर्व, सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में कूटनीतिक कदम उठाये जो कि सराहनीय हैं। जिनका विश्व स्तर पर भी अनुकूल प्रभाव देखा गया। लगभग 75 देशों के प्रतिनिधियों से भारत सरकार द्वारा संपर्क साधा गया और उन्हें भारतीय पक्ष से अवगत कराया। जिसका प्रभाव यह हुआ कि विश्व का जनमत भारत के पक्ष में झुका और पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया। पुलवामा में हुए नरसंहार की घटना में दरअसल समस्त विश्व को बाध्य किया कि उसे आतंकवाद के विरुद्ध भारत के साथ खड़ा होना आवश्यक हो गया।
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या इस कार्यवाही के बाद पाकिस्तान सरकार व वहाँ की आतंकवादी गतिविधियां चलाने वाले संगठन शान्त हो जायेंगे? क्या अब पुलवामा जैसी घटनाओं की पुनरावृति नहीं होगी? क्या पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए दवाई की इतनी मात्रा ही काफी है?
1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद 1965, 1971 कारगिल व 2018 में सर्जिकल स्ट्राइक आदि प्रत्यक्ष युद्ध के अलावा परोक्ष रूप से आज लगभग 70 साल से हम पाकिस्तान सीमा पर खरबों रूपये की सम्पत्ति व लाखों लोगों की जानों को खो चुके हैं। जिसमें सेना के जवान, अधिकारी और आम नागरिक सब शामिल हैं। तो आखिर कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा? कभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को हम मिठाइयां खिलायेंगे ओर कभी सर्जिकल स्ट्राइक करेंगे। पाकिस्तान के कारण आज जम्मू कश्मार का पूरा क्षेत्र बरबाद हो गया है। वहाँ का आमजन त्राहि-त्राहि कर रहा है। समस्त युवा दिशाहीन हो गया है। और वो अलगाववादी ताकतों के प्रभाव में आकर उनके दिखाये गये रास्तों पर चलने लगा है। मेरे विचार से पाकिस्तान से लड़ाई सिर्फ सीमा की लड़ाई नहीं रह गई है अपितु एक बहुत बड़े क्षेत्र में यह घरेलु संघर्ष का कारण भी बन बई है।
मेरा निजी मत है कि पाकिस्तान से सीमा पर संघर्ष के साथ-साथ घरेलू मोर्चे पर कारगर कदम उठाने होंगे जिससे पाकिस्तान को हमारे युवाओं द्वारा घरेलू सहयोग न मिले। जम्मू कश्मीर के युवक अलगाववादी ताकतों के बहकावे में न आयें और उनको अपना भविष्य भारत में रहकर और भारत के प्रति निष्ठा रखकर ही सुरक्षित लगे न कि अलगाववादियों के द्वारा दिशाहीन होने पर हो। बहुत ज्यादा आवश्यक है कि जम्मू कश्मीर के युवाओं को दिशा देकर देश की मुख्य धारा में शामिल करने की। उसके लिये चाहे सरकार को धारा 370 भी हटानी पड़े तो वो कदम भी तुरन्त लेना चाहिये क्योंकि जब तक जम्मू कश्मीर में औद्योगिक विकास नहीं होता तब तक इस क्षेत्र के युवाओं को शिक्षा और रोजगार दोनों नहीं मिलेंगे। जिसका फायदा उठाकर अलगाववादी ताकतें इनको भटकाने में कामयाब हो जाती हैं। पाकिस्तान से सटी सभी भारत की सीमाओं को सील कर देना चाहिए क्योंकि पाकिस्तान से देश के अन्य राज्य जैसे पंजाब, राजस्थान, गुजरात की भी सीमायें लगती हैं, किन्तु यहाँ से घुसपैठ की घटनायें न के बराबर होती हैं। तो ये क्या कारण है कि सबसे ज्यादा आतंकवादी घुसपैठ जम्मू कश्मीर से ही होती है? एक तो वहां की सीमायें भौगोलिक दृष्टिकोण से इस प्रकार की हैं कि उनको सील करना मुश्किल कार्य है और दूसरा इतने लम्बे संघर्ष के बाद वहां का युवा पाकिस्तानी अलगाववादियों के प्रभाव में आ गया है। सरकार को दोनों मोर्चों पर कारगर कदम उठाने पड़ेंगे, अन्यथा सर्जिकल स्ट्राइक और 26 फरवरी को की गई हवाई कार्यवाही से स्थाई समाधान होगा, ऐसा मुझे नहीं लगता। आज पूरे देश की अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सिर्फ इस क्षेत्र के ऊपर लगी हुई है जो कि देश के लिये हितकारी नहीं है। मैं समझता हूं अगर भारत पाकिस्तान के उपर आक्रमण करता हैे तो इस समस्या का स्थाई हल नहीं है। एक सीमित क्षेत्र में हुए कारगिल युद्ध में ही हमने 527 जवानों को शहीद करवा दिया, जबकि पाकिस्तान की तरफ से 327 जवानों के मरने की पुष्टि हुई। मात्र कुछ दिन चली इस लड़ाई में हजारों करोड़ रूपया ध्वस्त हो गया और समस्या वहीं की वहीं रही। कारगिल के बाद लगभग 20 साल में फिर हम अपने हजारों जवानों को शहीद कर चुके हैं क्योंकि पाकिस्तान आज दुनिया में आतंकवादी देश के रूप में जाना जाने लगा है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट हुई पड़ी है। उस देश को परोक्ष रूप से आतंकवादी संगठन ही चला रहे हैं। ऐसे में चाइना जैसे देश उसकी परिस्थिति का फायदा उठा के भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिये पाकिस्तान के पास खोने के लिये ज्यादा कुछ नहीं है। दूसरी ओर भारत विकासशील देश है। दुनिया के मानचित्र पर भारत का एक दबदबा है और यहां की अर्थव्यवस्था भी दिन प्रतिदिन उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में जानी जा रहीह है। ऐसे में युद्ध जैसी परिस्थितियों के परिणाम भारत के प्रति प्रतिकूल होंगे।
अब समय है कि कूटनीतिक प्रयासों के साथ-साथ जम्मू कश्मीर का विकास और सीमाओं की अभेद्य चौकसी तीनों दिशाओं में कदम उठाये जायें और पाकिसतान से किन्हीं भी परिस्थितियों में व्यापारिक संबंध नहीं रखे जायें। तभी पाकिस्तान कमजोर होगा और वह फिर भारत से द्वेष की भावना बंद करेगा।
Sign in
Sign in
Recover your password.
A password will be e-mailed to you.
[post-views]
Comments are closed.