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नफरत फैलाने का नही जागरूपता का माध्यम बने सोशल मीडिया : सतीश यादव

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गुड़गांव 13, अगस्त (अजय) : मीडिया हब का निर्माण सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार के लिए करना चाह रहा था तो फिर उसकी व्याख्या इस रूप में कैसे हुई कि सरकार का इरादा लोगों की ऑनलाइन गतिविधियों पर निगरानी करना है? इस सवाल का जवाब जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म सूचनाएं हासिल करने, अपनी बात प्रभावी ढंग से कहने, सवाल पूछने और विरोध जताने का अवसर उपलब्ध कराने के साथ कई तरह की समस्याएं भी पैदा कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर तमाम तत्व जिस तरह नफरत फैलाने, दुष्प्रचार करने, लोगों को उकसाने और यहां तक कि उन्माद एवं आतंक की पैरवी करने तक का काम कर रहे हैं वह भारत समेत दुनिया के अनेक देशों के शासन-प्रशासन के लिए एक बड़ा सिरदर्द है। सोशल मीडिया कंपनियां अपने प्लेटफार्म पर सक्रिय अराजक और उन्मादी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने अथवा अवांछित या भड़काऊ सामग्री के प्रसार को रोकने में किस तरह आनाकानी करती हैं, इससे खुद सुप्रीम कोर्ट परिचित है। बहुत दिन नहीं हुए जब सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराध के वीडियो प्रतिबंधित करने में हीलाहवाली पर गूगल, फेसबुक समेत तमाम कंपनियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।

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