ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे को हाईकोर्ट की हरी झंडी
मुस्लिम पक्ष को अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रस्ताव पर विचार करना चाहिए
तीन अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में बनी ज्ञानवापी मस्जिद के वैज्ञानिक सर्वे के कार्य को हरी झंडी दे दी है। हिन्दू और मुस्लिम पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने वाराणसी की जिला अदालत के फैसले को बरकरार रखा है। मालूम हो कि जिला न्यायालय ने 21 जुलाई को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वे करने का आदेश दिया था। जिला अदालत के आदेश पर रोक लगाने के लिए ही मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद में पिछले अनेक वर्षों से नमाज अदा की जा रही है, इसलिए मस्जिद परिसर के सर्वे की कोई जरुरत नहीं है। यह मुसलमानों का आस्था स्थल है। लेकिन वहीं हिन्दू पक्ष का कहना रहा कि मस्जिद का निर्माण हिन्दू मंदिर को तोड़कर किया गया है।
मस्जिद की इमारत में आज भी सनातन संस्कृति के चिन्ह नजर आते हैं। हिन्दू पक्ष ने जो तर्क रखे उसी के आधार पर जिला न्यायालय और अब हाईकोर्ट ने सर्वे के आदेश दिए हैं। इस सर्वे में वैज्ञानिक पद्धति से यह पता लगाया जाएगा कि मस्जिद की इमारत किन तत्वों से बनी है। हाईकोर्ट का फैसला आने से तीन दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुस्लिम पक्ष के आग्रह किया था कि हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को देखते हुए मस्जिद का परिसर समर्पित कर दिया जाए। सीएम योगी का कहना रहा कि जब इमारत में हिन्दू प्रतीक चिन्ह नजर आ रहे हैं, तब यह स्थान मस्जिद का कैसे हो सकता है। उन्होंने मुस्लिम पक्ष से सकारात्मक पहल की अपील की। अब जब हाईकोर्ट ने भी सर्वे को हरी झंडी दे दी है, तब मुस्लिम पक्ष को सीएम योगी के प्रस्ताव पर विचार करना चाहिए। यह सही है कि मुगल आक्रमणकारी औरंगजेब ने 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ही मस्जिद बनवाई थी। मस्जिद के निर्माण में मंदिर के अवशेष का भी उपयोग किया था। जब मंदिर को तोड़ने की बात इतिहास में लिखी हुई है, तब मुस्लिम पक्ष का अब सकारात्मक पहल करनी चाहिए। हालांकि पुरातत्व विभाग के सर्वे से मस्जिद पर कोई निर्णय नहीं होना है।
अभी तो सिर्फ यही पता लगाया जा रहा है कि मस्जिद के निर्माण में कौन सी सामग्री उपयोग में आई थी। यह बात अलग है कि हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में जाने का ऐलान मुस्लिम पक्ष ने कर दिया है। क्योंकि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है, इसलिए मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार है।
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