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उत्तर से दक्षिण कोरिया का ऐतिहासिक मिलन, जानिए- क्या होगा नतीजा

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सियोल ।परमाणु हथियारों और मिसाइलों की धमकी देने वाले नॉर्थ कोरियाई नेता किम जोंग उन ने शुक्रवार को सीमा पार करके दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून से मुलाकात की। किम जोंग उन दक्षिण कोरिया में न्यूक्लियर संकट पर होने वाली समिट में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे हैं। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन के बीच इस बैठक को ऐतिहासिक माना जा रहा है।

1950 से 1953 तक दोनों देशों के बीच कोरिया युद्ध हुआ। इस जंग के बाद दोनों के बीच कोई शांति समझौता नहीं हो सका। लिहाजा तब से ही दोनों के बीच जंग की स्थिति बनी हुई है। जानी दुश्मनों के बीच हो रही इस शिखर वार्ता पर दुनिया की टकटकी लगी है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष अब तक केवल तीन बार ही आमने-सामने बैठे हैं। माना जा रहा है कि इस बातचीत से दोनों पड़ोसी देशों के बीच औपचारिक युद्ध विराम हो सकता है साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से किम की प्रस्तावित मुलाकात का रास्ता भी साफ होगा।

कहां हुई मुलाकात

व्यापक स्तर पर सैनिक जमावड़े वाली सीमारेखा पर मौजूद संयुक्त सुरक्षा क्षेत्र के एक गांव पैनमुंजोम में किम और मून की मुलाकात हुई।

इसलिए अहम मुलाकात

इस मौके सहित दोनों देश अब तक केवल तीन बार ही मिले हैं। किम के पिता किम जोंग इल 2000 में दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति किम डे जुंग से फिर 2007 में रो मू हुन से मिले थे। तानाशाह किम दूसरी बार किसी राष्ट्राध्यक्ष से मिल रहे हैं। पिछले महीने वे चीन गए थे। कोरियाई मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि ये सम्मेलन शतरंज के खेल की तरह है। जिस तरह से शतरंज के खेल में खिलाड़ी का शुरुआती पैंतरा बाद के पैंतरे तय कर देता है। उसी तरह ये वार्ता बाद के कदमों का निर्णय करेगी।

संयुक्त सुरक्षा क्षेत्र

करीब 250 किमी लंबे असैन्य क्षेत्र का वह स्थान है जहां दोनों देश एक दूसरे के आमने-सामने होते हैं। कोरिया युद्ध के खत्म होने के बाद इस जगह को दोनों देशों के बीच बातचीत करने के लिए बनाया गया था। कुल छह इमारतें हैं। तीन संयुक्त राष्ट्र के नीले रंग से रंगी हैं। यहीं दोनों देशों की बीच अक्सर बातचीत होती है। इन इमारतों में दक्षिण कोरिया की तरफ से प्रवेश करके उत्तर कोरिया की जमीन में निकला जा सकता है।

1976 में यहां दो अमेरिकी सैनिकों के मारे जाने से पहले इस पूरे क्षेत्र में दोनों देशों के सैनिक मुक्त रूप से आ-जा सकते थे। इस घटना के बाद दोनों देशों की सीमारेखा पर बाउंड्री खड़ी कर दी गई।

वार्ता की मेज पर अब क्यूं आया किम

विशेषज्ञों के अनुसार किम मानता है कि उसने परमाणु और मिसाइलों का पर्याप्त जखीरा तैयार कर लिया है। इससे वह किसी भी देश से मोल तोल करने की स्थिति में है। अपने परमाणु कार्यक्रम के दौरान जिन देशों से उसके संबंध बिगड़ गए थे, वह अब उन्हें ठीक करने की सोच रहा है। दक्षिण कोरिया में आयोजित शीतकालीन ओलंपिक में देश की भागीदारी भी इसी सोच का नतीजा थी।

कौन क्या चाहता है

सियोल की मंशा है कि अगर उत्तर कोरिया परमाणु हथियार मुक्त हो जाए तो औपचारिक शांति संधि को अमलीजामा पहनाया जा सकता है। वास्तविक लक्ष्य तो ट्रंप-किम के बीच समझौते का साकार होना है। वहीं किम की मंशा है कि उसके देश पर लगाए तमाम प्रतिबंध हटा लिए जाएं। देश की आर्थिक तरक्की के लिए वह कई तरीके के आर्थिक सहयोग का पक्षधर है।

क्या होगा नतीजा

एजेंडे में तीन बड़ी चीजें शामिल हैं। परमाणु हथियार मुक्त क्षेत्र, द्विपक्षीय रिश्तों में सुधार और औपचारिक शांति समझौता। उत्तर कोरिया परमाणु कार्यक्रम से पीछे हटने की बात लगातार कह रहा है, लेकिन इसकी बड़ी कीमत मांग सकता है। लीबिया के तानाशाह गद्दाफी का हश्र किम को याद है इसलिए इस बातचीत पर कोई ठोस समझौता निकलना आसान नहीं होगा।

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