गुडगाँव (अजय) : नवजन चेतना मंच के संयोजक वशिष्ठ कुमार गोयल ने हाल ही में हुई घटना पर बोलते हुए कहा कि कर्नाटक के बिदर क्षेत्र में हुई घटना ने देश को हिलाकर रख दिया। व्हाट्सएप के जरिए फैली अफवाह ने एक इंजीनियर की जान ले ली और भीड़ से उसे बचाने में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। एक इंजीनियर, जो अपने मित्र से मिलने आया था और आसपास के बच्चों को चाकलेट बांट रहा था, उसकी वीडियो शूटिंग करके सोशल मीडिया के शरारती तत्वों ने व्हाट्सएप पर ऐसा मैसेज फैला दिया, जिसमें लिखा था कि कोई बच्चों का अपहरण करता लाल कार में घूम रहा है। ऐसी अफवाहों से किसी अनजान आदमी को अपराधी की निगाह से देखा जाने लगा है। सोशल मीडिया के जरिये फैलने वाली बेबुनियाद अफवाहें समाज के लिये घातक होती जा रही हैं। इसे लेकर सरकार, सामाजिक संस्थाएं व सर्वोच्च न्यायालय भी काफी चिंतित है। किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को किसी ऐसे कदम के बाबत आगाह किया है कि लोगों के बीच सोशल मीडिया संपर्क और चैटिंग की जासूसी की जाए। कोर्ट ने चेताया है कि एक सोशल मीडिया सर्विलेंस हब की स्थापना वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दखल की निगाह से देखी जाएगी। जिसका सरकारी तंत्र के हाथों दुरुपयोग भी संभव है।
सवाल है कि ऐसे आपत्तिजनक संदेशों पर रोक लगाने का प्रभावी रास्ता क्या हो। निश्चित रूप से ऐसे संदेश तैयार करने, वीडियोग्राफी करने और उसे प्रसारित करने वालों की पहचान व्हाट्सएप, फेसबुक जैसे प्लेटफार्म पर टैग किया जाना और संदेश के साथ मूल वेबकास्टर का मोबाइल नंबर, मेल आईडी या जैसी पहचान अनिवार्य रूप से सोशल मीडिया ग्रुप के हर सदस्य, हर कड़ी तक पहुंचते जाना पुलिस तथा इससे प्रभावित पक्ष के लिये मददगार हो सकती है। दरअसल, इन अफवाहों का प्रसार बहुत तेजी से होता है और अधिकतर सूचनाएं अविश्वसनीय और झूठ के ताने-बाने में बुनी गई होती हैं। लोग भावनाओं में बहकर बिना सोचे-समझे आगे फॉरवर्ड कर देते हैं। सोशल मीडिया कंपनियां इसके लिए जिम्मेदारी नहीं लेतीं। हालांकि व्हाट्सएप ने इस दिशा में कुछ पहल की है परंतु ऐसा नियम नहीं आया है जो इनके द्वारा प्रयुक्त सूचनाओं के अनधिकृत प्रयोग को नियंत्रित कर सके। इस विषय में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का रोल बढ़ जाता है ताकि कोई इन माध्यमों का सामाजिक घृणा फैलाने में प्रयोग न कर सके।
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