नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट कंपनियों के रवैये को लेकर कहा है कि रियल एस्टेट कंपनियों में खरीददारों के पैसे को दूसरे प्रॉजेक्ट में लगाने का चलन एक अपराध की तरह है और यह बंद होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर खरीदने के लिए खरीदार जो पैसा देता है उसे रियल एस्टेट कंपनियां किसी दूसरे प्रॉजेक्ट के निर्माण के लिए खर्च कर देती हैं। कोर्ट ने कहा कि यह आपराधिक गबन के समान है और कंपनियों को इसके लिए सजा मिलनी चाहिए।
आम्रपाली के तमाम हाउजिंग प्रॉजेक्ट्स में निवेश करने वाले और फ्लैट्स का पजेशन नहीं पाने वाले हजारों खरीददारों की तरफ से दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस यू. यू. ललित ने कहा कि कंपनियां खरीददारों के पैसे को दूसरे प्रॉजेक्ट्स के निर्माण समेत किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं खर्च कर सकती। कोर्ट ने ध्यान दिया कि आम्रपाली ग्रुप ने खरीददारों के 2765 करोड़ रुपयों को किसी दूसरे उद्देश्य के लिए खर्च किया।
बेंच ने कहा, ‘यह आपराधिक गबन है। ख़रीददार आप पर विश्वास करके पैसे देते हैं। इसका किसी अन्य मकसद के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकता। जमाकर्ताओं ने आप पर यकीन करके अपने पैसे दिए हैं, जिन प्रॉजेक्ट्स के लिए आपको पैसे मिले हैं, उसके निर्माण के बजाय इन पैसों को आप किसी दूसरे उद्देश्य के लिए कैसे खर्च कर सकते हैं?’ कोर्ट द्वारा तय की गई समयसीमा में प्रॉजेक्ट्स को पूरा नहीं करने और आदेश का पूरी तरह पालन नहीं करने की वजह से आम्रपाली ग्रुप को सर्वोच्च अदालत से कड़ी फटकार मिली।
आम्रपाली ग्रुप की सभी 40 कंपनियों और उनके प्रमोटरों व डायरेक्टरों के बैंक खातों को जब्त करने का आदेश देते हुए बेंच ने कहा, ‘इस सेक्टर में यह बीमारी प्रचलित है और हम इस बुराई को रोकना चाहते हैं। आप जमाकर्ताओं के पैसे का इस्तेमाल अपनी शान बढ़ाने और बिजनस के विस्तार के लिए करते हैं। आप अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए खरीददारों के कंधों पर नहीं चढ़ सकते। यह स्वीकार्य नहीं है। यह मुद्दा हमारे दिलों को चीर रहा है लेकिन हमने आपको अपने तौर-तरीको को सुधारने का मौका दिया था पर आप नहीं बदले।’
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