PBK NEWS | नई दिल्ली । फिरोजशाह तुगलक ने अपने उपयोग के लिए चीन से मंगाए गए बेहतरीन चीनी मिट्टी के बर्तन तुड़वाकर इसलिए फिंकवा दिए थे, क्योंकि इन बर्तनों पर चित्रकारी थी। इस तरह के चीनी मिट्टी के बने 40 बर्तन 1960 में कोटला फिरोजशाह किला में हरियाली विकसित किए जाने के लिए की जा रही खोदाई में मिले थे। इन्हें एक ही स्थान पर रखा गया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) इन बर्तनों को लेकर कराए गए विभिन्न प्रकार के अध्ययन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि शायद चित्र बने होने के कारण ही इन बर्तनों को फेंका गया था। इन बर्तनों को पहली बार जनता के लिए प्रदर्शित किया गया है। लालकिला में इसके लिए प्रदर्शनी लगाई गई है।
विश्व धरोहर सप्ताह के शुभारंभ के अवसर पर इस प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया। यह प्रदर्शनी 31 दिसंबर तक चलेगी। साहित्यिक संदर्भों के साथ-साथ पुरातात्विक साक्ष्य यह प्रमाणित करते हैं कि ये बर्तन 14 वीं शताब्दी में चीन के बाहर भी प्रचलित हो गए थे।
इस अवधि में चीन एक मंगोलियन राजवंश के शासनाधीन था। जो अपने आप को युआन कहते थे। युआन काल के दौरान चीनी मिट्टी के पात्र (बर्तन) पूरे विश्व में निर्यात किए गए और उनमें से एक बेहतरीन संग्रह दिल्ली के फिरोजशाह कोटला परिसर से मिला है।
ऐसा माना जाता है कि सम्राट फिरोजशाह तुगलक के आदेश पर जानबूझ तोड़कर बर्तनों को फेंका गया। लालकिला स्थित एएसआइ के संग्रहालय विंग के इंचार्ज पीयूष भट्ट करते हैं कि इस बात के स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं। परन्तु इतने बहुमूल्य संग्रह को नष्ट करने की एक संभावना यह हो सकती है कि ऐसे अलंकरण उनके धर्म के विरुद्ध थे। पुरातत्व प्रेमी अधिवक्ता बलविंदर सिंह ने दावा किया कि चित्रकारी के ही कारण बर्तनों को तुड़वा कर फेंका गया।
स्पर्श कर पता करें बर्तनों के बारे में
प्रदर्शनी में बच्चों हर काल के बर्तनों की खास जानकारी दी जा रही है। एएसआइ की खोजबीन प्रणाली की भी जानकारी दी जा रही है। बच्चे यहां विभिन्न काल के बर्तनों का स्पर्श भी कर सकते हैं।
News Source: jagran.com
Comments are closed.