PBK NEWS | लखनऊ । उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने गोमती चैनलाइजेशन (रिवर फ्रंट) परियोजना की जांच सीबीआइ को सौंपने के लिए केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने संस्तुति भेज दी। पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट की लागत 656 करोड़ रुपये थी, जो बढ़कर 1513 करोड़ हो गई थी। 90 फीसद राशि खर्च होने के बावजूद कार्य पूरा नहीं हो पाया था। अगर सीबीआइ ने जांच अपने हाथ में ले ली तो ढेरों बड़े लोग जांच के घेरे में आएंगे। अखिलेश सरकार के तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव समेत कई राजनेता भी जांच की जद में होंगे।
गृह सचिव भगवान स्वरूप ने गुरुवार को बताया कि रिवर फ्रंट परियोजना की जांच सीबीआइ को सौंपने की केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को संस्तुति भेज दी गई है। जांच के लिए सरकार के लिए सीबीआइ को सभी आवश्यक संसाधन मुहैया कराया जाएगा। इसकी जानकारी भी उन्हें दी गई है। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोमती चैनलाइजेशन परियोजना का मौका मुआयना किया था। मौके पर ही परियोजना में धन का दुरुपयोग होने का उल्लेख करते हुए जांच कराने की घोषणा की थी। इसके बाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में न्यायिक जांच समिति बनी। इसने अपनी रिपोर्ट में परियोजना में वित्तीय अनियमितता का उल्लेख किया और सिंचाई, जल निगम के कई इंजीनियरों और दो आइएएस अधिकारियों को दोषी ठहराया था। तत्कालीन व्यय वित्त समिति के सदस्य, अनुश्रवण कमेटी की कार्यशैली पर सवाल उठाया गया था।
समिति की रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री ने नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना, राजस्व परिषद के अध्यक्ष प्रवीर कुमार, अपर मुख्य सचिव वित्त अनूप चंद्र पांडेय और तत्कालीन प्रमुख सचिव न्याय रंगनाथ पांडेय (अब हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति) को शामिल करते हुए कार्रवाई निर्धारण समिति गठित की, जिसने आरोपित अधिकारियों, इंजीनियरों को पक्ष रखने का अवसर दिया। कार्यो का निरीक्षण किया। 16 जून को खन्ना समिति ने मुख्यमंत्री को सौंपी रिपोर्ट में तकनीकी जांच की विशेषज्ञता न होने का उल्लेख करते हुए भ्रष्टाचार की सीबीआइ से जांच की संस्तुति की थी। समिति संस्तुतियों के आधार पर योगी आदित्यनाथ सरकार ने परियोजना की सीबीआइ जांच का निर्णय लिया। निर्णय के एक माह गुजरने के बाद सरकार ने परियोजना की सीबीआइ जांच की संस्तुति केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को भेज दी है।
सीबीआइ जांच शुरू होने की प्रक्रिया
राज्य सरकार किसी प्रकरण की सीबीआइ जांच का कारण स्पष्ट करते हुए केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को प्रोफार्मा भेजती है। कार्मिक मंत्रालय इस पर सीबीआइ निदेशक से उसकी आख्या मांगता है। सीबीआइ के जांच के लिए तैयार होने की दशा में उसे जांच सौंपी जाती है। सामान्यत: अगर सीबीआइ जांच से इन्कार करती है तो उसे जांच नहीं दी जाती है।
आलोक समिति ने ये खामियां रेखांकित कीं
- 1- इंजीनियरों द्वारा सेन्टेज चार्जेज नहीं जमा कराए।
- 2- डायफ्राम वाल, इंटरसेप्टिंग ड्रैन, रबर डैम की टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी की गई। डायफ्राम की दीवार सीधी बनाई गई, जबकि इसे ढलान वाला होना चाहिए।
- 3- इंटरसेप्टिंग ड्रैन, रबर डैम, म्यूजिकल फाउंटेशन शो आदि के लिए कैबिनेट ने जुलाई 2016 में मंजूर दी जबकि कार्य 2015 में ही शुरू हो गया।
- 4- पर्यावरण नियमों का पालन नहीं किया।
- 5- विभिन्न आइटम में निर्धारित में कई गुना अधिक व्यय किया गया।
कार्रवाई निर्धारण समिति
न्यायमूर्ति आलोक की रिपोर्ट के आधार पर गठित मंत्री सुरेश खन्ना समिति ने 16 जून को मुख्यमंत्री को सौंपी रिपोर्ट में कहा था कि उनके पास तकनीकी बिंदुओं की जांच की विशेषज्ञता नहीं है। ऐसे में विशेषज्ञ एजेंसी अथवा सीबीआइ से जांच कराई जाए।
Comments are closed.