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दरबारी व्यवस्था से नहीं उबर पा रही है मध्य प्रदेश, दिग्विजय व कमलनाथ के गिरफ़्त में फँसी कांग्रेस

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भोपाल, 11जुलाई। मध्यप्रदेश में कांग्रेस को जीतना है या नहीं, इसका निर्णय प्रदेश स्तर के दोनों नेता अभी नहीं कर पा रहे हैं।
मध्यप्रदेश की राजनीति में कांग्रेस हाई कमान को किस सीमा तक कितनी हिस्सेदारी देनी है, ये कांग्रेस के दोनों नेता अभी तय नहीं कर पा रहे हैं।
मध्यप्रदेश की राजनीति में अपने पुत्रों का किस तरह संरक्षण कर उन्हें भविष्य के मुख्यमंत्री पद के योग्य बनाना है, ये कांग्रेस के दोनों नेता तय नहीं कर पा रहे हैं।
इतिहास में पहली बार कांग्रेस हाई कमान की ओर से श्रीमती प्रियंका गांधी ने राज्य को राजनैतिक प्राथमिकता की श्रेणी में लाने की कोशिश की। प्रियंका जी का पहला दौरा कमलनाथ के महाकौशल क्षेत्र को उनके पुत्र नकुल नाथ की उपस्थिति में करवाया गया। जिसके वांछित परिणाम न आने थे और न आए।
प्रियंका जी का दूसरा दौरा ग्वालियर क्षेत्र में 21 जुलाई को प्रस्तावित है। जिसके पूर्व दिग्विजय सिंह के पुत्र के स्वागत के लिये आये हुये कांग्रेस कार्यकर्ताओं में मारापीट ने जयवर्धन सिंह के महत्व को स्थापित कर दिया और इसके बाद स्वयं दिग्विजय सिंह प्रस्तावित दौरे की पूरी तैयारियों और रूप रेखा बनाने में सीधे लग गये।
डर इस बात का है सिंधिया की कांग्रेस से अलग होने की वास्तविक कहानी कहीं प्रियंका गांधी के सामने न आ जाए और कही गांधी परिवार कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व की पूर्व गलतियों को मिटाने के लिये सिंधिया को अपने परिवार में वापस शामिल न कर ले। इस लुका-छिपी में प्रियंका गांधी के ग्वालियर दौरे को भी दो नेताओं के मध्य सीमित रखना है।
राजनीति की यह उठा पटक मध्यप्रदेश के राजनैतिक भविष्य पर कई चिन्ह लगा रही है:-
1. गांधी परिवार को धोखे में रखकर निकाले गये सिंधिया को क्या कांग्रेस लम्बें समय तक बाहर रख पायेगी या गांधी परिवार अपने पारिवारिक सदस्य सिंधिया को उनका सम्मान वापस करते हुये पुनः गृह प्रवेश करायेगा।
2. क्या मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में कोई ऐसा अज्ञात फैक्टर काम कर रहा है जो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों को ही भाजपा के खुले विरोध में जाने से रोक रहा है।
3. मध्यप्रदेश के अजय सिंह राहुल, गोविन्द सिंह, सुरेश पचौरी, अरूण यादव, उमंग सिंघार, असलम शेर खान आदि नेताओं के चार दशक पुराने अनुभवों का लाभ कांग्रेस क्यो नहीं ले रही, इन्हें भविष्य के चुनाव से दूर क्यों रखा गया है। निर्णय केवल दिग्विजय सिंह और कमलनाथ द्वारा ही क्यों लिये जा रहे है, जबकि दोनों ही नेताओं पर अपने-अपने पुत्रों को मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाने के षड़यंत्र करने का आरोप सामान्य व्यक्ति भी लगा रहा है।
4. मध्यप्रदेश के संगठन में दीपक बावरिया जैसे व्यक्ति को स्थापित करने और उनका उपयोग करने की पहल क्यों नहीं की जा रही।
5. क्यों बार-बार यह प्रचारित किया जा रहा है कि कांग्रेस हाई कमान मध्यप्रदेश के लिये एक फ्यूज बल्ब की तरह है जिसे दस बार ठोकने पर एक बार कुछ क्षणों के लिये वह जिन्दा होता है।
6. मध्यप्रदेश के कांगे्रेस हाई कमान की उपेक्षा और उसकी सक्रियता के विरुद्ध लगातार षड़यंत्र दो नेताओं द्वारा क्यों किये जा रहे हैं। क्या हाई कमान के प्रदेश प्रवास से राज्य के अन्य कांग्रेसियों का कोई लगाव नहीं है।
7. मध्यप्रदेश कांग्रेस एक विचित्र स्थिति में फ़सी है। संभावना यह है कि दोनों नेताओं की जोड़ी कांग्रेस की जीत के लिये अभी ओर पांच साल इंतजार करना चाहती है, जब तक उनके पुत्र उम्र के हिसाब से मुख्यमंत्री पद के काबिल न हो जाए। राज्य में निष्क्रिय कांग्रेसियों को सहारा दिया जा रहा है और राजनीति और कूटनीति के हिसाब से सक्रिय कांग्रेसजनों से मिलने के लिये कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के पास कोई समय नहीं है। कमलनाथ आज भी कार्यकर्ता से दस सेकंड की मुलाकत कर राज्य को समझ रहे हैं और दिग्विजय सिंह कार्यकर्ताओं के मध्य घुसकर नये राजनैतिक गणित को पैदा करने की कोशिश कर रहे है, जो पार्टी के हित में नहीं है पर दोनों नेताओं का व्यक्तिगत स्वार्थ उससे जुड़ा हुआ है।

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