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61 लाख मतदाताओं का बांग्लादेश ने मतदाता सूचि से नाम हटाना पड़ा था : सतीश यादव

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गुड़गांव 18, अगस्त (अजय) : 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद आशा की जाती थी कि नए शासन में सांप्रदायिक सौहार्द होगा और जनता की आर्थिक समस्याओं पर समुचित ध्यान दिया जाएगा, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। 1975 में शेख मुुजीबुर्रहमान की हत्या हो गई और जनरल इरशाद ने इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म घोषित कर दिया। ऐसा होने के साथ ही बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों पर हमले शुरू हो गए। हमलों का शिकार मुख्यत: हिंदू, बौद्ध, ईसाई और जनजातियां बनीं। फलस्वरूप इन लोगों ने बड़ी संख्या में भारत में शरण ली। बांग्लादेश में 2001 में चुनाव के बाद भी अल्पसंख्यकों पर हमले हुए, क्योंकि उनके बारे में यह संदेह किया गया कि उन्होंने अवामी लीग को वोट दिया होगा जिसकी हार हो गई थी। एक अंग्रेज पत्रकार जॉन विडल ने इन हमलों का दर्दनाक चित्रण किया है। इसके बाद मुख्यत: आर्थिक कारणों से बांग्लादेशी भारत आने लगे।

बांग्लादेश इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज, ढाका के अनुसार 1951 से 1961 के बीच करीब 35 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान से ‘गायब’ हो गए। इस संस्था के मुताबिक 1961 से 1974 के बीच भी करीब 15 लाख लोग संभवत: भारत जा बसे। बांग्लादेश चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में भी कुछ दिलचस्प तथ्य हैं। 1991 में वहां 6,21,81,745 मतदाता थे, परंतु जब 1995 में सत्यापन किया गया तो आयोग को 61,65,567 नाम मतदाता सूची से काटने पड़े, क्योंकि उनका कोई पता ही नहीं चला। 1996 में पुन: आयोग को 1,20,000 बांग्लादेशी नागरिकों का नाम मतदाता सूची से हटाना पड़ा। स्पष्ट है कि ये सब भारत चले आए थे।

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