PBK NEWS | नई दिल्ली। भारतीय बैंक ग्रोथ के लिए काफी हद तक बड़े कार्पोरेट्स क्रेडिट पर निर्भर रहते हैं, लेकिन अब इसका दायरा भी सिमट रहा है और आने वाले समय में यह और सीमित हो जाएगा। ऐसे में कर्जदाताओं (बैंकों) को छोटे व्यवसाय के साथ विकास करना होगा। यह जानकारी एक रिपोर्ट के जरिए सामने आई है।
बीसीजी फिक्की रिपोर्ट के मुताबिक, “जब बात प्रगति की आएगी तो एमएसएमई बैंकों के लिए प्रमुख विकास-चालक होंगे, इसके लिए अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण को धन्यवाद दिया जाना चाहिए। जब खुदरा क्षेत्र अपनी पकड़ खोएगा और मौजूदा स्तर पर स्थिर रहेगा तो कॉरपोरेट लोन फ्रंट पर बड़े संकट की उम्मीद है।” बीसीजी इंडिया के डायरेक्टर और सीनियर पार्टनर सौरभ त्रिपाठी जिन्होंने रिपोर्ट तैयार की है के मुताबिक बड़े और मध्य वर्ग के कार्पोरेट्स जो कि बैंकों के लेंडिंग रेवेन्यू में 39 फीसद की हिस्सेदारी रखते हैं वो साल 2022 तक 27 फीसद के आंकड़े पर आ जाएंगे।
इसकी वजह यह है कि क्रेडिट का एक बड़ा हिस्सा थोक बाजारों की तरफ बढ़ रहा है। यहां तक की छोटी अवधि में कार्पोरेट सेग्मेंट में खराब कर्ज बैंकों के सामने चुनौती पैदा कर रहा है। बड़े (बड़ा कर्ज लेने वाले और आसानी से चुकाने वाले) कर्जदार अब पूंजी बाजार का रुख कर चुके हैं और अब बैंकों के पास ऐसे कर्जदारों की संख्या घट रही है, ऐसे में बैंकों को कार्पोरेट बैंकिंग पर खास ध्यान देना होगा।
वहीं दूसरी ओर एसएमई क्रेडिट बैंकों के लिए मौजूदा समय की 20 फीसद की दर से 25 फीसद तक बढ़ेगा। यह जीएसटी की ओर से शुरू किए गए अनौपचारिक क्रेडिट के प्रतिस्थापन से प्रेरित होगा, डिजिटल भुगतान को बढ़ाएगा।
NEWS SOURCE :- www.jagran.com
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