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किसानों के मुद्दे पर भी कांग्रेस को मात, कृषि मंत्री राधामोहन ने दी राहुल को पटकनी

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PBK NEWS | नई दिल्ली। हर मोर्चे पर बिखर रहे विपक्ष में अब आगामी संसदीय सत्र से पहले फिर से एक ऐसे मुद्दे की खोज शुरू हुई जो एकजुट कर सके। ध्यान किसान आंदोलन की ओर जा रहा है। लेकिन यहां भी सरकार ने पहले ही मोर्चा दुरुस्त कर लिया है।

एक प्रसंग देखिए- 13 जून को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी नानी से मिलने विदेश जाने की घोषणा करते हैं। दूसरे दिन 14 जून को केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह चीन में कृषि मंत्रियों के ब्रिक्स सम्मेलन में शरीक होने का कार्यक्रम रद कर देते हैं। कार्यक्रम में कृषि सचिव को भेज दिया जाता है। यह पूरा फैसला इतना सरल नहीं है जितना दिखता है। राहुल के विदेश जाने और कृषि मंत्री के न जाने का संदर्भ भविष्य की रणनीति से जुड़ा है। कार्यक्रम रद करने से ठीक पहले कृषि मंत्री ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी।

पिछले महीनों में मंदसौर और किसानों की मौत को लेकर खड़ा हुआ आंदोलन भाजपा सरकार के लिए सबसे कठिन दौर था। यह माना जा रहा था कि विपक्ष यहां से अपने पैर मजबूत करेगा। लेकिन हुआ उल्टा। हाथ तो भाजपा के जले थे लेकिन मात कांग्रेस को मिली। भाजपा शासित राज्य मध्य प्रदेश से लेकर केंद्र तक भाजपा ने रणनीतिक तौर पर विपक्ष के पैर बांध दिए। प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता सुस्त दिखे। बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ही उपवास पर बैठकर विपक्ष की रणनीति को ध्वस्त कर दिया।

बाद में विदेश से लौटकर कांग्रेस के कुछ नेताओं ने धरना जरूर दिया लेकिन जनता तक संदेश छोड़ने में नाकाम रहे। केंद्र में राधामोहन का राजनीतिक पत्ता ज्यादा भारी पड़ा। सरकार यह संदेश देने में सफल रही कि किसान आंदोलन के कारण मंत्री ने सरकारी कामकाज के लिए भी विदेश यात्रा को खारिज कर दिया। यह जताने की कोशिश हुई मामला भले ही राज्य का हो, केंद्रीय कृषि मंत्री किसी भी मसले को सुलझाने के लिए देश में मौजूद रहेंगे। बताते हैं कि इस बीच उन्होंने अधिकारियों के साथ किसानों की समस्याओं को लेकर रोजाना बैठक की।

ऐसा नहीं है कि केवल भाजपा और सरकार ही किसानों के प्रति संवेदनशीलता का दावा कर ही है। बल्कि विपक्ष के कुछ दल भी कांग्रेस नेताओं के फैसले से हतप्रभ और असहज हैं। एक विपक्षी नेता का कहना है कि कांग्रेस ऐसे मुद्दों पर एकजुटता की पहल क्यों नहीं करती है जो दलगत और क्षेत्रीय राजनीति से ऊपर हो। अगर राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करने के लिए लगातार विपक्षी दलों की बैठक हो सकती है तो फिर मंदसौर के बाद क्यों नहीं पहल हुई। अब कुछ क्षेत्रीय विपक्षी दल अगुवाई करने की कोशिश मे हैं। यानी संसद में किसान आंदोलन मुद्दा बनेगा तो इसका श्रेय कांग्रेस की बजाय दूसरे दल लेंगे।

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