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दिल्ली सहित पड़ोसी राज्यों में भी प्रदुषण गम्भीर समस्यां : शरद गोयल

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PBK News (अजय) : दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण का अत्यंत खतरनाक स्तर तक पहुंचना एक बार फिर राष्ट्रीय चिंता का विषय बना है। सरकारें चिंतित हैं, जबकि न्यायपालिका ने उनसे जवाब-तलब किया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के ऊपर स्मॉग (धुएं) की काली परत छा गई। नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास की वेबसाइट के मुताबिक दिल्ली की हवा में पीएम-2.5 की मात्रा 703 तक पहुंच गई, जबकि इन महीन प्रदूषक तत्वों के 300 का स्तर पार करते ही वायु को मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक मान लिया जाता है। बुधवार शाम चार बजे पीएम-2.5 की मात्रा 1000 की सीमा पार कर गई। इससे फैले भय का अंदाजा लगाया जा सकता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और दिल्ली हाई कोर्ट की ताजा टिप्पणियों में इन्हीं चिंताओं का इजहार हुआ है। दोनों न्यायिक संस्थाओं ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकारों और वहां के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से जवाब-तलब किया है। उच्च न्यायालय ने हरियाणा और पंजाब के किसानों के पराली जलाने को मुख्य कारण मानते हुए पूछा है कि इसे रोकने के लिए उचित कदम क्यों नहीं उठाए गए? एनजीटी ने उल्लेख किया कि इस तरह के हालात पिछले साल भी पैदा हुए थे तो इस वर्ष सरकारों ने इसे रोकने के एहतियाती उपाय क्यों नहीं किए? केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन ने दिल्ली के पड़ोसी राज्यों से प्रदूषण रोकने के लिए प्रभावी कार्रवाई करने को कहा है। मगर फिलहाल कड़वी हकीकत यही है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लाखों लोगों को गैस चैंबर जैसी स्थिति में रहना पड़ रहा है।

गंभीरता से विचार करें, तो साफ होगा कि समस्या फौरी नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें कहीं अधिक गहरी हैं। हर साल दिल्ली में सर्दियों से पहले हवा की गुणवत्ता खराब होती है, क्योंकि तब ठंडी हवा प्रदूषक तत्वों को जमीन के आसपास ही रखने लगती है। दिवाली पर पटाखों का धुआं, मोटर वाहनों और डीजल संचालित जनरेटरों का धुआं, कोयले से चलने वाले पावर प्लांट और औद्योगिक उत्सर्जन से दिल्ली की आबोहवा प्रदूषित होती है। इन पहलुओं पर गौर किए बगैर महज किसानों के फसल अवशेष जलाने पर ध्यान केंद्रित करने से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा। दुखद स्थिति है कि राष्ट्रीय राजधानी और दरअसल पूरे देश में प्रदूषण में हो रही तेज बढ़ोतरी के बावजूद इसको लेकर पर्याप्त जागरूकता और चिंता का अभाव है। स्थिति जब बेहद गंभीर होती है, तब कुछ दिन तक उस पर चर्चा होती है, फिर सब कुछ पहले जैसा चलने लगता है। विशेषज्ञों की राय है कि स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए स्थायी और निरंतर कदम उठाए जाने चाहिए। सार्वजनिक परिवहन में भारी निवेश, प्रदूषक ईंधन के इस्तेमाल पर रोक, किसानों को फसल अवशेष जलाने का विकल्प उपलब्ध कराने और धूल को उड़ने से रोकने के उपाय किए बिना इस समस्या से नहीं निपटा जा सकता। अफसोसनाक है कि आज भी इसकी कोई योजना बनती नहीं दिखती। ऐसे में दिवाली पर पटाखों की बिक्री रोकना अथवा पराली जलाने के लिए किसानों को दंडित करना मसले का सिर्फ सतही इलाज ही है। खबरों के लिए मेल करें : pbknews1@gmail.com  खबरों के लिए सम्पर्क करें : 9811513537 

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