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चंदा देने वालों से प्रतिज्ञा पत्र लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए : सतीश यादव

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गुडगाँव, 5 जनवरी (ब्यूरो) : राजनीति से काले घन की सफाई के नाम पर सरकार ने चुनावी बांड योजना पेश की है। कहा जा रहा है कि इसमें बांड खरीदने वालों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाएंगे। वह किस दल को यह चुनावी बांड देगा इसकी जानकारी भी गुप्त रहेगी। ऐसे में भला यह कैसे पता चलेगा कि दानी साहूकार है या कोई काला चोर? हजार रुपये का एक बेंच दान करने वाला तो उस बेंच पर अपना नाम पता और पूरा प्रायोजन लिखवा देता है। करोड़ों रुपये का बेनामी दान भला नि:स्वार्थ कौन देगा? और क्यों देगा? यह भी माना जा सकता है कि देशहित में नि:स्वार्थ दानियों की भी कमी नही है। यदि सचमुच ऐसा ही है तो फिर ऐसे देशभक्तों के नाम पते सार्वजनिक करने में क्या नुकसान है? गुप्तदान व्यवस्था में यह संभव है कि कुछ आपराधिक या व्यवसायिक समूह बड़ी रकम दान करके पार्टी तथा नेताओं की ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठता को प्रभावित करें, इसलिए राजनीतिक पार्टियों के दान दाताओं से उनके नाम पते, उनके आय का स्त्रोत, दान का प्रायोजन तथा सत्तारुढ़ या विपक्ष के किसी भी नेता या अधिकारियों को अपने स्वार्थहित में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित नहीं करने का प्रतिज्ञा पत्र लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए। सरकार को राजनीति में ईमानदारी लाने के लिए और भी उपाय करने होंगे। सबसे बड़ी समस्या राजनीति के अपराधीकरण की है। पैसे के बल पर अपराधी तत्व राजनीति में प्रवेश कर जाते हैं। हालांकि वे सीधे राजनीति में नहीं आते हैं, वे तमाम समाजसेवी कार्य भी करते रहते हैं। अपने दबंगई के बल पर वे लोगों के काम भी कराते हैं। इसी कारण से काफी जनता उनसे जुड़ जाती है। जनता को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश भी रहती है जो उसे संरक्षण दे। ऐसे लोग भले ही जनता के काम आते हैं, लेकिन ये समाज विरोधी तत्व होते हैं। इन पर अंकुश लगाने की जरूरत है।

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