गुरुग्राम (अजय) : टीकरी स्थित पोलरिस अस्पताल में आज यहाँ पहुंचे मरीजों को जरूरी बातें बताते हुए प्रशिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ पोलरिस अस्पताल डॉ. टी.श्रृंगारी ने बताया कि गठिया रोग भोजन के ठीक से पचने से पहले पुन: भोजन कर लेने से, प्रकृति-विरूद्ध पदार्थों को खाने से, अधिक शीतल और वसायुक्त खाद्य-पदार्थों का सेवन करने से उत्पन्न होता है। ऐसे में गठिया का रोग दांत गन्दे रहना, भय, अशान्ति, शोक, चिन्ता, अनिच्छा का काम, पानी में भीगना, ठंड लगना, आतशक, सूजाक, अधिक स्त्री सहवास (संभोग), ठंडी रूखी चीजें खाना, रात को अधिक जागना, मल-मूत्र के वेग को रोकना, चोट लगना, अधिक खून बहना, अधिक श्रम, मोटापा आदि कारणों से होता है।
डॉ.श्रृंगारी ने बताया कि यह रोग खून की कमी, शारीरिक कमजोरी तथा बुढ़ापे में हड्डियों की चिकनाई कम होने के कारण भी उत्पन्न होता है। इस रोग में दर्द या तो बाएं या दाएं घुटने में अथवा दोनों घुटनों में होता है। रोगी को बैठने के बाद खड़े होने में तकलीफ होती है और रात के समय रोग बढ़ जाता है। सर्दी तथा वर्षा के मौसम में यह रोग दर्द के साथ रोगी को व्याकुल कर देता है एवं चलने-फिरने, उठने-बैठने में तकलीफ पैदा करता है। रोगी के घुटने कड़े हो जाते हैं और उनमें कभी-कभी सूजन भी हो जाती है।
गठिया रोग को आमवात, संधिवात आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग में सबसे पहले शरीर में निर्बलता और भारीपन के लक्षण दिखाई देते हैं। इस रोग के होने पर हाथ के बीच की उंगलियों में दर्द होता है। अगर इसका इलाज नही किया जाता तो हाथ की दूसरी उंगलियों में भी सूजन व दर्द होने लगता है। गठिया रोग होने पर शरीर की हडि्डयों में दर्द होता है, जिसके कारण रात को रोगी सो भी नहीं पाता है।
कारण : तेज मसालों से बना भोजन (फास्ट फूड), गर्म भोजन, ठंडी चीजों का अधिक सेवन करने से पेट में गैस पैदा होती है जिसके कारण यह रोग उत्पन्न होता है। जब भोजन आमाशय में जाकर अधपचा रह जाता है तो भोजन का अपरिपक्व रस जिसे आम कहते हैं वो त्रिक (रीढ की हड्डी का निचला हिस्सा) की हडि्डयों में जाकर वायु के साथ दर्द उत्पन्न करता है। इसी रोग को गठिया का रोग कहते हैं।
लक्षण :
भोजन का अच्छा न लगना, अधिक आलस आना, बुखार से शरीर के विभिन्न अंगों में सूजन, कमर और घुटनों में तेज दर्द जिसके कारण रोगी रात को सो नही पाता है आदि गठिया रोग में होने वाले लक्षण है।
गठिया में भोजन : एक वर्ष पुराने चावल, जंगली पशु-पक्षियों के मांस का सूप, एरण्डी का तेल, पुरानी शराब, लहसुन, करेला, परवल, बैंगन, सहजना, लस्सी, गोमूत्र, गर्म पानी, अदरक, कड़वे एवं भूख बढ़ाने वाले पदार्थ, साबूदाना, तथा बिना चुपड़ी रोटी का सेवन करना गठिया रोग में लाभकारी है। इस रोग में फलों का सेवन और सुबह नंगे पैर घास पर टहलना रोगी के लिए लाभकारी होता है। गठिया रोग में रात को सोते समय एक गिलास दूध में जरा-सी हल्दी डालकर पीने से लाभ मिलता है।
गठिया में परहेज : उड़द की पिट्ठी की कचौडी तथा बड़ी मछली, दूध, दही, पानी, गर्म (मसालेदार) भोजन, रात को अधिक देर तक जागना, मल-मूत्र के वेग को रोकना आदि गठिया रोग में हानिकारक है। मूली, केला, अमरूद, कटहल, चावल, लस्सी एवं गुड़ आदि का प्रयोग भी इस रोग में हानिकारक है।
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